देह का अग्नि - संस्कार शरीर को नष्ट करने की सर्वश्रेष्ठ पद्दति है
और  फिर  सारा  संसार  कहता  है  कि आत्मा  को  शरीर  का  मोह  नहीं  होना चाहिए , इसलिए  उस  शरीर  को  जला  देते  है। देह  का  अग्नि - संस्कार  शरीर  को  नष्ट  करने  की   सर्वश्रेष्ठ  पद्दति  है। क्योंकि  जब  तक शरीर को  रखते  हैं ,  तब  तक  उस  शरीर  से  मुक्त  हुई  आत्मा  को  आगे  कि  गति  नही  मिलती   है  और  उस  शरीर  से  निकली  हुई  आत्मा   शरीर  के  आस- पास  ही  मँडरति  रहती  है।"
" हम किसी के घर में जाकर आठ-दस दिन रहते हैं और वापस घर आ जते हैं
तो भी कुछ दिनों तक वह घर याद रहती है। यह ठीक ऐसा ही है। शरीर छोड़ने के
बाद भी आत्मा उस शरीर को नहीं छोड़ती। और इन्ही बंधनों के कारण आत्मा को आगे कि गति नहीं मिलती है। और दूसरी ओर , उस शरीर से बदबू आने लगती है , शरीर सड़ने लग जाता है। उस शरीर से प्रेम करने वाले भी उस शरीर के साथ नहीं बैठ पाते हैं। वे ही उस शरीर को नष्ट कर देते हैं।"
"इसलिए केवल शरीर कोई काम का नहीं है। शरीर तो शरीर का भी संरक्षण नहीं कर सकता। आत्मा जब तक रहती है , तभी तक वह बना रह सकता है। जो शरीर अपने-आप को भी सँभाल नहीं सकता उसका क्या अहंकार रखना ?
हि.स.यो-४
पुष्ट-४८
" हम किसी के घर में जाकर आठ-दस दिन रहते हैं और वापस घर आ जते हैं
तो भी कुछ दिनों तक वह घर याद रहती है। यह ठीक ऐसा ही है। शरीर छोड़ने के
बाद भी आत्मा उस शरीर को नहीं छोड़ती। और इन्ही बंधनों के कारण आत्मा को आगे कि गति नहीं मिलती है। और दूसरी ओर , उस शरीर से बदबू आने लगती है , शरीर सड़ने लग जाता है। उस शरीर से प्रेम करने वाले भी उस शरीर के साथ नहीं बैठ पाते हैं। वे ही उस शरीर को नष्ट कर देते हैं।"
"इसलिए केवल शरीर कोई काम का नहीं है। शरीर तो शरीर का भी संरक्षण नहीं कर सकता। आत्मा जब तक रहती है , तभी तक वह बना रह सकता है। जो शरीर अपने-आप को भी सँभाल नहीं सकता उसका क्या अहंकार रखना ?
हि.स.यो-४
पुष्ट-४८
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