मानो तो गुरु भगवान् हैं और न मानो तो वे सामान्य मनुष्य हैं

गुरु को मानने पर ही है | मानो तो गुरु भगवान् हैं और न मानो तो वे सामान्य मनुष्य हैं | लेकिन अगर गुरु को भगवान् मानो तो दो फर्क हमारे जीवन में आते हैं | एक तो आत्मसमाधान प्राप्त होता है कि मैंने भगवान् को पा लिया और फिर भगवान् की खोज समाप्त हो जाती है और आत्मा शान्त और स्थिर हो जाती है | मन शान्त हो जाता है और उससे ध्यान अच्छा लगता है | दूसरा, परमात्मा के सानिध्य का आभास होता है | जब हम किसी जीवन्त मनुष्य को ही भगवान् मानते हैं तो हम उसके पास जाते हैं, उसका दर्शन करते हैं | उसकी निकटती के कारण - हम 'उसके' पास गए- यह समाधान मिलता है | मैं परमात्मा के निकट गया , इसका समाधान होता है.....    हि.स.यो-४.  पृष्ठ-११२

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