Importance of Gurupurnima


  • जिस प्रकार से सूर्य की करने जब तक उस बिज तक नहीं पहुँचती, बिज कभी भी अंकुरित नहीं होता.              
  • गुरूपूर्णिमाँ वह दिन है, जिस दिन गुरूशक्तियाँ साक्षात हमारे सान्निध्य मे रहनेवाली है । और उस सान्निध्य में उस ईश्वरीय तत्त्व को जागृत करने का सुअवसर हमें प्राप्त होनेवाले है........                      
  • कस्तूरीमृग जैसी हमारी स्थिति है -- बाहर खोजता है भीतर नही झाँकता  । अँदर झाँकना मनुष्य का स्वभाव ही नहीं है । लेकिन एक बहुत बड़ी सामूहिकता के साथ भीतर झाँकने का सुअवसर गुरूपूर्णिमा के दिन प्रत्येक आत्मा को मिलता है.....    
  • गुरूपूर्णिमाँ आत्मा का महोत्सव है । एक दिन, एक घडी ऐसी आती है, जिस घडी में उनके भीतर की यात्रा प्रारंभ हो जाती है.....                                           
  • भीतर की यात्रा प्रारंभ होने के बाद मन अंतर्मुखी हो जाता है । अंतर्मुखी होने के बाद बाहर की सारी खोज समाप्त हो जाती है .....                                                    
  • चित्त शान्त और स्थिर होता है , बुध्दि गिर जाती है और एक सुखद अनुभूति -- पूर्ण समाधान की स्थिति प्राप्त हो जाती है । और संपूर्ण समाधान तब प्रप्त होता है जब आपको परमात्मा का साक्षात्कार हो जाता है......    
  • और वो हो जाने के बाद मे,  मैनेे परमेश्वर को पा लिया यह अनुभव होने लग जाता है । ढुँढ़ना -- खोजना सब समाप्त हो जाता है और एक शुन्य की स्थिति सम्पूर्ण रूप से वहाँ प्राप्त हो जाती है........         
  • सभी साधक आत्मसाद करें            
  •  चित्त को पवित्र करने के बाद अगली पादान पर जाएँगे -- गुरूसान्निध्य प्राप्त किजिए....                   
  • गुरूसान्निध्य का अर्थ -- जो वातावरण, जो अनुभूति आज हमें प्राप्त होनेवाली है, उस अनुभूति को संजो के रखिए । जैसे एखादी बहुमूल्य चीज़ को बड़े संजो के रखते है..... ठिक उसी प्रकार से अनुभूति को बहुत संजो करके रखिए । जैसे सम्भाल करके रखोगे, वो अनुभूति अापको प्रत्येक दिन नही, प्रत्येक क्षण गुरूसान्निध्य दिलवाएगी, गुरूसान्निध्य का अनुभव कराएँगी। आप अनुभव करेंगे, प्रत्येक श्ण गुरू हमारे साथ है..........               

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