आत्मा अत्यन्त शुध्ध स्वरूप है; दोष तो शरीर के हो सकते हैं
आत्मा अत्यन्त शुध्ध स्वरूप है; दोष तो शरीर के हो सकते हैं | स्थानविशेष का प्रभाव शरीर पर पड़ सकता है, ' *आत्मा* ' इन सबसे मुक्त है| और लोग समूह में आत्मा तभी बनकर आ सकते हैं जब वे परमात्मा से ही जुड़े हों | क्योंकि परमात्मा ही वह शक्ति है जो आत्माओं के समूह का निर्माण कर सकती है | क्योंकि आत्माओं को संगठित करने की शक्ति केवल परमात्मा में हो सकती है | परमात्मा ही वह शक्ति है जिस से जुड़ ने के साथ, जिसकी अनुभूति हो जाने के बाद मनुष्य का शरीररूपी आवरण छूट जाता है और मनुष्य आत्मस्वरूप बन जाता है.... हि.स.यो-४. पृष्ठ-८८
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