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Showing posts from December, 2018

प्रार्थना

जीवन  में   कितनी  भी   प्रॉब्लेम   आने  दो  , जीवन  में  कितनी  भी      कठी नाइयाँ  आने  दो  आप   परमात्मा   को   प्रार्थना   करो - "हे   परमात्मा ,  मुझे   संतुलित   रख ,  मुझे  बेलन्स्ड   रख । ये  सब  परिस्थिती  को  मै   सामना   कर   लूँगा । " तो   अपने   आपको   सशक्त   करो   ना , अपने -आपको   मजबूत   करो ।  विश्व   में   शांति   आत्मा   से   ही   आ   सकती   है , आत्मशांति   के   बिना   विश्वशाँति   संभव  नही  है । पूज्य गुरुदेव महाशिवरात्री २०१५

Eighth day and completion of the Vishwachakra Anushthan

Today was the eighth and final day of the Vishwachakra Anushthan. The special thing that happened today was that the energy of the Auspicious Idol got very subtly connected with the subtle body existing in the Himalayas. Now the Auspicious Idol is directly connected to the Guru Energies and so one can communicate directly with the Guru Energies through the medium of prayer. Now the Auspicious Idol has also become a Medium. And when I communicated, I too offered a prayer that my sadhaks who have received such a divine body after many lifetimes which is suitable for receiving self-realisation and yet why don't they feel that they have received self-realisation? The Guru Energies explained the main reason for this is the inability to come out of their 'problems' and not meditating regularly. And the Guru Energies have given a simple way to help sadhaks come out of this state; and I too felt that this way was easy. Still, the success of this path also depends on 'sense o

विश्वचक्र अनष्ठान का आठवा दिन और समापन

आज विश्वचक्र अनुष्ठान का आठवा व अंन्तीम दिवस था। आज की विषेष बात यह रही की श्री मंगल मुती् की उजाे से हिमालय स्थीत सुक्ष्म शरीर का अती सुक्ष्म रूप से संमन्ध स्थापीत हो गया। अब श्री मंगल मुतीे का सीधा सम्पके ही  श्री गुरूशक्तीयो से स्थापीत हो जाने पर अब श्री मंगलमुती् के माध्यम से अपनी प्राथेना सीधे ही श्री गुरूशक्तीयो से की जा सकती है।अब तो श्री मंगल मुती् भी एक माध्यम हो गयी । जब सम्पके हुआ तो मैने भी एक प्राथेना की साधको इतने जन्मो के बाद एक ऐसा दिव्य शरीर मीला जो आत्म साक्षात्कार प्राप्त कर सके तो भी आत्म साक्षात्कार का एहसास मेरे साधको को क्यो नही होता है।। श्री गुरूशक्तीयो ने एक कारण मुख्य रूप से बताया “समस्या” से बाहर ही नीकल पाना और नीयमीत ध्यान न करना । और साधको को इस स्थिती मे से बाहर निकलने का एक आसान मागे श्री गुरूशक्तीयो ने बताया है।वह मागे मुझे भी आसान लगा।फीर भी इस मागे से सफलता तो “समपेण भाव” और संपुणे “विश्वास” पर ही मीलना संभव है।फीर भी आपको बताने मे क्या हजे है। इसलीये यह प्राथेना मागे आपको अवश्य 15 जनवरी को ट्स्टीयो से बात कर बताऊगॉ क्योकी इस मागे मे

Seventh day of the Vishwachakra Anushthan

Today, as soon as I came with a feeling of surrender, suddenly in a very subtle manner oneness was established between the Shree Gaadisthan and the Shree Yantra, and as soon as oneness was established with this place, from that very place with subtle feeling a connection was established with the Auspicious Idol above. And I saw my energy travelling from the root chakra to the crown chakra in the form of a very subtle energy, going into the sky and that energy remained established over there itself until the time oneness was established between the two. I could see everything from top to bottom and I felt that the universe was so huge and the earth was just a part of it, and  what is the status of one man on earth! Even then man spends his life living in the ignorance of "I". When I started making efforts to come down, a kind of storm got raised below, as if an earthquake had come in nature. For me to return, I had established my own hair on the ground, and it is only because

विश्व चक्र अनुष्ठान का सातवा दिन

आज अनायास ही आते ही पुणे समपीेत भाव के साथ अतीसुक्ष्मरूम से श्री गादीस्थान के के श्री यंन्त्र के साथ समरसता स्थापीत कर ली और जब इस स्थान से समरसता स्थापीत होगयी तो वही से सुक्ष्मभाव के साथ उपर की श्री मंगल मुतीे के सांथ जुड गया और बडी सुंक्ष्म उजाे के साथ मुलांधार से सहस्त्रार चक्र तक संफर कर अपनी उजाे को आकाश मे जाते देखा और वह उजाे वहॉ तब तक स्थापीत रही जब तक की दोनो ही स्थानो मे समरसता स्थापीत नही हुयी उपर से नीचे का सब दिख रहा था और लगा की ब्रम्हाड कीतना विशाल पृथ्वी तो एक भाग है।और पृथ्वी मे एक मनुष्य की हैसीयत ही क्या है। लेकीन फीर भी मनुष्य “मै” के अज्ञानता मे ही जिवन व्यतीत करता है।जब नीचे वापस आने का प्रयास किया तो नीचे तो तुंफान सा आ गया मानो प्रकृती मे ही एक भुचाल आ गया हो।मुझे वापस आने के लिये मैने अपने ही बाल नीचे स्थापीत कीये थे।और उसी के कारण उजाे का वापस शरीर मे आना संभव हुआ। लेकीन जो दोनो स्थानो मे समरसता स्थापीत करना थी वह हो गयी थी।आज का अनुष्ठान सुबह 8 बजे प्रांरभ हुआ और 5 बजे बाद तक चला । आप सभी को खुबखुब आशिेवाद आपका अपना बाबा स्वामी समप

स्वामीजी, आप हमें हमेशा कहते हैं कि हमारा चित्त आपके सूक्ष्म शरीर पर होना चाहिए, स्थूल शरीर पर नहीं | हमें कैसे पता चले कि हमारा चित्त आपके सूक्ष्म शरीर पर है ?

प्रश्न 41 - स्वामीजी, आप हमें हमेशा कहते हैं कि हमारा चित्त आपके सूक्ष्म शरीर पर होना चाहिए, स्थूल शरीर पर नहीं | हमें कैसे पता चले कि हमारा चित्त आपके सूक्ष्म शरीर पर है ? स्वामीजी : एक स्थूल शरीर द्वारा इतने सारे लोगों की कुंडलिनी शक्ति की जागृति होना असंभव है | कोई शरीर पर्याप्त नहीं है, जो इतने सारे लोगों के आत्मा की जागृति कर सके | यह तो जन्म-जन्म की इच्छाशक्ति है | जागृति, चैतन्य का माध्यम स्थूल शरीर हो सकता है | परंतु यह सिर्फ माध्यम है | सूक्ष्म शरीर चैतन्य का भंडार है | जब भी आपको ऐसा प्रश्न उठे कि मेरा चित्त सूक्ष्म शरीर पर है कि नहीं है, तब आप अपने दोनों हाथ सामने रखकर चित्त को सहस्त्रार पर रखना अगर आपके दोनों हाथों से चैतन्य की लहरियाँ फूट पड़ी, तब समझ लेना कि आपका चित्त सूक्ष्म शरीर पर है, अन्यथा नहीं | मधुचैतन्य : जुलाई,अगस्त,सितंबर-2002 चैतन्य धारा

ગુરુમંત્ર આત્મસાત્ કરવો એટલે શું?

પ્રશ્ન 27: ગુરુમંત્ર આત્મસાત્ કરવો એટલે શું? સ્વામીજી : ગુરુમંત્ર ફક્ત કેટલાક શબ્દોનો સમૂહ નથી, ગુરુમંત્ર તે પવિત્ર ગુરુઓના ત્યાગનો, તપસ્યાનો, સાધનાનો એક સજીવ સ્ત્રોત છે. તેની અંદર પ્રત્યેક શબ્દમાં એક ચૈતન્ય શક્તિ ભરેલી છે. તે જ કારણે તે મંત્રને આત્મસાત્ કરવો એટલે તે મંત્રના માધ્યમ દ્વારા પોતાના અસ્તિત્વને વિશ્વચેતનામાં મર્જ(વિલીન) કરવું છે. આ મંત્રની ઉર્જા ઉધ્વગામી છે. ઉધ્વગામી એટલે એક લેવલથી બીજા લેવલ સુધી, બીજા લેવલથી ત્રીજા લેવલ સુધી આવા સાત પગથિયાં પાર કરીને આ મંત્ર આપને એક શૂન્યની અવસ્થા પ્રદાન કરે છે. જે ધ્યાનથી પણ ઉપરની એક સ્થિતિ છે. નિર્વિચારતાથી પણ ઉપરની એક સ્થિતિ છે. આ ફક્ત શબ્દોનો સમૂહ નથી. તેની ઉર્જાની સાથે, તેની શક્તિની સાથે જોડાવું જ તેને આત્મસાત્ કરવું છે. મેં મારા જીવનમાં 'શ્રી શિવકૃપાનંદ સ્વામી' આ નામ કદી પણ નથી સાંભળ્યું. આપે સાંભળ્યું હોય તો ખબર નથી. શિવાનંદ હશે, કૃપાનંદ હશે, પરંતુ સંપૂર્ણ એક નામ... આ નામની અંદર સંપૂર્ણ ઉર્જા ભરેલી છે અને એક સ્થાનથી બીજા સ્થાન સુધી ફક્ત તે ઉર્જાના માધ્યમ દ્વારા આપણે પહોંચી શકીએ છીએ. આવા ઉર્જા ભરેલા મંત્રનું માધ્યમ બનાવીને ગ

सावधानियाँ....स्थूल शरीर के सान्निध्य में

प्रश्न 42 - स्वामीजी, आपने हमें समझाया कि आपके  स्थूल शरीर पर चित्त ज्यादा आता है  तो आपको तकलीफ होती है | तो हम कोशिश करेंगे  कि आपके स्थूल शरीर पर हमारा चित्त कम आए,  लेकिन हमने ऐसी कौनसी सावधानियाँ बरतनी चाहिए ताकि आपको कम-से-कम तकलीफ हो ? स्वामीजी : पहले, मुझे ऐसा लगता है कि आपका चित्त मेरे स्थूल शरीर के ऊपर है कि सूक्ष्म शरीर के ऊपर, यह अंतर आपको समझ में आना चाहिए | वह समझ में आया तो फिर मेरी आगे की बात समझ में आएगी | पहला यह कि जब आपका चित्त मेरे ऊपर आ रहा है और आपके हाथ में अगर वाइब्रेशन्स फील (महसूस) हो रहे हैं और आप मेरे पास में नहीं बैठे हैं; और आपके हाथ से अगर वाइब्रेशन्स बह रहे हैं, तो इसका अर्थ - आपका चित्त उस सूक्ष्म शरीर के ऊपर है, उस ऊर्जा के ऊपर है | और यह स्थूल और सूक्ष्म का अंतर पहचानने का रास्ता है, यह मार्ग है | और दूसरा, स्थूल शरीर का आकर्षण अत्याधिक है, उसमें से चुंबकीय तरंगे निकलती है | वे इसलिए निकलती है क्योंकि जैसे-जैसे साधकों की संख्या बढ़ते जाएगी...और बढ़ रही है ना, अभी जैसे महाशिबीर बंद किए तो अभी वीडियो शिविर हो रहे हैं | मधुचैतन्य : जुलाई,अगस्त,सितंबर-

Sixth day of the Vishwachakra Anushthan

Today's experience was that anyone can become a medium, all he has to become is empty - he will be in physical form but free from the physical form. Two such similar mediums in the form of the Auspicious Idol and the Shree Gaadisthan have been established here - which are in physical form yet free from physical influence. Both are empty, both are pure, hence supreme consciousness is flowing from both of them. Now, only the work of uniting them remains. Both have to be brought under a single flow. The medium is connected to both uniformly, only connecting both remains to be done. Whatever happens will happen suddenly, some events happen suddenly. All incidents do not have a 'doer', now I am waiting for the sudden event. Today I definitely felt that whatever that happens will be the first in the 'spiritual world' - this will be a spiritual revolution and that which happens will be with the vision of 800 years. It will definitely not be easy,  it is just necessary to

विश्व चक्र अनुष्ठान का छठा दिन

आज का अनुभव यह था की कोई भी माध्यम बन सकता है। बस वह रिक्त होना चाहीये वह हो तो स्थुल मे पर स्थुल से मुक्त हो। ऐसे ही दो माध्यम यहॉ  श्री मंगलमुती् और श्री गादी स्थान के रूप मे स्थापीत हो गये है। जो स्थुल मे हो कर भी स्थुल के प्रभाव से मुक्त है। दोनो रिक्त है दोनो पवीत्र है। इसलीये दोनो के माध्यम से परम चैतन्य बह रहा है। बस अब इस दोनो का संगम करना बाकी है। दोनो को एक धार मे लाना है।माध्यम तो दोनो से समान रूप मे जुडा हुंआ है।बस दोनो को जोडना बाकी है। जो कुछ होगा वह अनायास ही होगा कुछ घटनाऐ अनायास ही घटती है। सब घटनाओ का “कतेा” नही होता अनायास की ही प्रतीक्षा चल रही है। यह आज जरूर लगा की जो होगा वह “आध्यात्मीक जगत” मे प्रथम ही होगा।यह एक आध्यात्मीक क्रांन्ती होगी।और जो 800 साल की दृष्टी से होगा।वह आसान तो नही होगा।बस धीरज रखने की आवश्यकता है। आप सभी को खुब खुब आशिवाद       आपका अपना        बाबा स्वामी समेपण आश्रम दांन्डी गुजरात 26/12/2018 आज का विश्व चक्र अनुष्ठान सुबह 8 से शाम 4 बजे तक चला था।करीब 8 घंन्टो मे ही सपन्न हो पाया ।

હું રોજ મંત્રજાપ કરું છું, પરંતુ ધ્યાન કરવા માટે કેન્દ્રમાં નથી જઈ શકતી. મારા માટે શું ઉચિત છે, તે જણાવવાની કૃપા કરો.

પ્રશ્ન 27: હું રોજ મંત્રજાપ કરું છું, પરંતુ ધ્યાન કરવા માટે કેન્દ્રમાં નથી જઈ શકતી. મારા માટે શું ઉચિત છે, તે જણાવવાની કૃપા કરો. સ્વામીજી : જો આપ કોઈ ભગવાનના નામનો જાપ કરતા હો, જે આપને કોઈ ગુરુએ આપ્યો હોય, તો તેનું પણ મહત્વ છે. જેમા માનો કે આપ 108 વાર રામ નામનો જાપ કરો છો, ત્યારે એક વાર તો એવું થશે કે આપનું ચિત એકાગ્ર થઈ જશે અને આપ પરમાત્માની સાથે જોડાઇ જશો. મંત્રજપથી મન ભૂત અને ભવિષ્યમાં ભટકવાના બદલે એક સ્થાને કેન્દ્રિત થશે અને આપને નિર્વિચાર સ્થિતિ મળશે. ધ્યાનના માર્ગ દ્વારા આપને ગુરુકૃપામાં નિર્વિચાર સ્થિતિ સહજતાથી પ્રાપ્ત થઈ શકે છે. શૂન્યની સ્થિતિ પર પહોંચવાથી મંત્રજપ નથી થતા. તેથી ધ્યાનના માધ્યમથી નિર્વિચારતા પ્રાપ્ત કરીને આપ પૂર્ણતાથી સ્થિતિ પર સહેલાઈથી પહોંચી શકો છો. જેઓ નિયમિત ધ્યાન કરતા હોય, તેમને મંત્રજપ કરવાની કોઈ આવશ્યક્તા નથી. તેઓ આખો દિવસ કામ કરતી વખતે પણ નિર્વિચારતામાં રહી શકે છે. હા, દિવસભરમાં ક્યારેય પોતાનું મન ભટકે તો મંત્રનું નામ સ્મરણ કરી શકો છો, જેનાથી મનને એકાગ્રતા પ્રાપ્ત થઈ શકે છે. શરીરમાં મસ્તક બધા અવયવો સાથે, જ્ઞાનતંતુઓથી જોડાયેલ હોય છે. જો મગજ નિર્વિચાર સ્થ

કુંડલિની શક્તિ શું છે? કુંડલિની શક્તિ કેવી રીતે જાગૃત થઈ શકે છે?

પ્રશ્ન 26: કુંડલિની શક્તિ શું છે? કુંડલિની શક્તિ કેવી રીતે જાગૃત થઈ શકે છે? સ્વામીજી : કુંડલિની શક્તિ આપણી અંદરની પ્રાણશક્તિ છે. ગર્ભમાં ભૃણ જ્યારે ત્રણ-ચાર મહિનાનો થાય છે ત્યારે તેમાં કુંડલિની શક્તિનો પ્રવેશ થાય છે. આ શક્તિ શરીરના તાલુભાગ (સહસ્ત્રાર ચક્ર) દ્વારા શરીરમાં પ્રવેશ કરે છે અને બધા ચક્રોમાંથી પસાર થતી મૂલાધાર ચક્રની ઉપર એક ત્રિકોણાકાર અસ્થિમાં સ્થિત થઈ જાય છે. કુંડલિની શક્તિનો એક ભાગ શરીરની બધી પ્રક્રિયાઓને ક્રિયાન્વિત કરે છે પરંતુ આ શક્તિનો મોટોભાગ સામાન્ય મનુષ્યમાં સુપ્તાવસ્થામાં જ રહે છે અને મનુષ્યને તેના જીવનકાળમાં તેની ખબર જ નથી પડતી. કુંડલિની શક્તિને જાગૃત કરવી એટલે આ કુદરતી શક્તિના નિષ્ક્રિય ભાગને ક્રિયાન્વિત કરવો. કુંડલિની શક્તિની જાગૃતિ મંત્રજાપ કે હઠયોગ દ્વારા થાય છે પરંતુ તેમાં 10 થી 15 વર્ષ લાગી શકે છે. પરંતુ જો ગુરુકૃપા હોય તો ગુરુના સ્પર્શમાત્રથી, દૃષ્ટિપાત માત્રથી તે જાગૃત થઈ શકે છે. ચૈતન્ય ધારા પાનાં નં.- 20 - 21.

Experience of the fourth day of the Vishwachakra Anushthan

Today's experience was such that two mediums of supreme consciousness have been created over here. One is above - the Auspicious Idol, and the one below is the Shree Gaadisthan. Now, the difficult task of establishing oneness between these two remains to be done. I have not yet found the path as to how this will happen. This is an extremely important moment of my life, because I do not have any experience of this work. I also know that I won't be able to do it, it will happen suddenly but I don't know how. At present I am just participating in this process and moving ahead. A magnetic energy has been created in both these places, it is pulling me and keeping me adhered to it. Hours are passing by but it appears as if just a moment has passed by. Today's anushthan also began at 8am and continued past 3pm, but it appeared as if just a moment had elapsed. Lots of blessings to all of you.             Your own            Baba Swami Samarpan Ashram Dandi Gujarat 25/12/20

विश्वचक्र अनुष्ठान का चौथा दिवस का अनुभव

आज का अनुभव यह रहा की परमचैतन्य के दो माध्यम यहॉ निमाेण हो गये है।एक उपर है। श्री मंगल मुतीे और नीचे है।श्री गादीस्थान अब इन दोनो स्थानो मे समरसता स्थापीत करने का कठीण काये करना है।अब कैसे होगा इस का मागे अभी तक तो मीला नही है। यह मेरे जिवन का अतीमहत्वपुणे क्षण है। क्योकी इस काये का कोईऐ अनुभव नही है।और यह भी पता है। यह करते नही आयेगॉ अनायास ही हो जायेगॉ पर कैसे वह पता नही अभी तो केवल अपने आप इस प्रक्रीया मे शामील कर आगे बढ रहा हु । दोनो स्थानो मे एक चुंबकीय शक्ती नीमाणे हो गयी है।वह अपने पास ही खींचकर रख रही है।घंन्टे बीत जा रहे है। पर लगता है की एक क्षण ही बीता है।आज का अनुष्ठान भी 8 बजे प्रांरभ हुआ और 3 बजे बाद तक चला है।पर लगा मानो अक क्षण बीता हो। आप सभी को खुबखुब आशिेवाद ।            आपका अपना               बाबा स्वामी समपेण आश्रम दांन्डी गुजरात 25/12/2018

गहन ध्यान 2019

|| जय बाबा स्वामी ||          आदरणीय संचालकगण साधकगण          आप सभी को बताते हुए आनंद हो रहा है कि 13वा गहन ध्यान अनुष्ठान दिनांक 18 जनवरी 2019 से समर्पण आश्रम दांडी, नवसारी, गुजरात में शुरू होने जा रहा हे।            इस 45 दिवसीय महापर्व में गुरुकार्य इच्छुक साधक संलग्न फॉर्मेट में अपना नाम दिनांक 25 दिसंबर 2018 तक हमें 3.00बजे  रजिस्ट्रेशन करा सकते है। सहकार की अपेक्षा सह जय बाबा स्वामी

विश्वचक्र का चौथा दिन

किसी भी उजाे को स्थापीत होने मे तीन दिन का समय लगता है।शरीर से आत्मा तक का सफर भी तीन दिन का ही होता है। कल इस अनुष्ठान के तीन दिन पुणे हो गये।तो आज यह अनुभव हुआ की श्री मंगलमुतीे की उजाे उपर स्थापीत है। वह वहॉ पकडे रहती है।और न नीचे जाने देती और न बाहर जाने देती और नीचे श्री गादी स्थान की उजाे उपर ही जाने देती ।दोनो और जबरजस्त उजाे महसुस होती है । दोनो जगह एक विषेष प्रकार का आकेषण महसुस होता है। आज मुझे लगा की एक मॉ को लगता है। की मुझे कोई संतान नही है। एक तो बच्चा होना चाहीये ।और उपर वाला उसकी सुनलेता है। और उसे दो जुडवा बच्चे हो जाते है। और दोनो बच्चो एक साथ ही भुक लगती है। तो “मॉ” को दोनो बच्चो को” स्तनपान” कराने मे जो कठीनाई होती है।बीलकुल ठीक वही कठनाई आज मैने महसुस की है।पता नही आगे के चार दिन मे क्या होगा। आप सभी को खुबखुब आशिेवाद               आपका अपना              बाबा स्वामी समपेण आश्रम दांन्डी गुजरात आज का अनुष्ठान सुबह 8 बजे प्रांरभ हुआ और दोपहर2 बजे तक चला।

ચક્ર શું છે?

પ્રશ્ન 25: ચક્ર શું છે? સ્વામીજી : મનુષ્યના શરીરમાં સાત ઉર્જાકેન્દ્ર હોય છે, જેને ચક્ર કહેવામાં આવે છે. આ ચક્ર શરીરની દૂષિત ઉર્જાને બહાર ફેંકી તાજી ઉર્જા ગ્રહણ કરતાં રહે છે. મનુષ્યના વિચારોના કારણે આ ચક્ર રૂંધાઇ જાય છે, પરિણામે દૂષિત ઉર્જા બહાર નથી ફેંકાતી અને શરીર અસ્વસ્થ થઈ જાય છે. આ ચક્ર જેટલા વિકસિત થશે, મનુષ્ય તેટલો સ્વસ્થ, સંતુલિત, પ્રસન્ન, સફળ તથા પ્રભાવશાળી થશે. ચૈતન્ય ધારા પાનાં નં.- 20.

The 'Gaumukh' of Samarpan Meditation at Dandi Samarpan Ashram

Yesterday this Ashram completed 14 years. The (development) of this Ashram had begun 14 years ago. During these 14 years, the 'river (Ganges) of consciousness which emerged from this 'Gaumukh' is flowing all over the world'. Today, 22 countries are actually enjoying this flow of consciousness. On the holy occasion of 'Datta Jayanti' this world has got this new 'Guru's Place's. This video was circulated on the occasion of this holy festival, so that the whole world gets information about this place. You too should send this video to your friends, so that they too can come to know about this. You are very fortunate in that you have also enjoyed this 'consciousness'. But everyone is not as fortunate as you are, so promote this video to the maximum extent possible and take the benefit of this Guru-karya. Lots of blessings to all of you on this holy occasion.                 Your own                  Baba Swami             Samarpan Ashram Dandi

Third Day's experience of the Vishwachakra Anushthan

Today, on the third day the experience was as if (the soul) was free from the bonds of the physical body, in exactly the same way as my physical body finds solitude in an uninhabited place. In that manner the physical body's aura develops and then it spreads out over several miles. This event takes place suddenly in a moment/flash; but to gather such a spread-out aura back into the physical body takes a lot of time. And the effect of this enormous spread-out aura is being experienced by those virtuous sadhaks who are around me, they too go into meditation effortlessly. I have used the word virtuous (punyavaan) after knowing/realising that without the good deeds of the previous birth it is not at all possible to come inside such a pure aura. Similarly, to go to the place of penance in the Himalayas too, a certain spiritual state is required, because once you get an entry in the place of spiritual practice then spiritual progress takes place effortlessly on it's own. A similar at

विंश्वचक्र अनुष्ठान के तिसरे दिन का अनुभव

आज तिसरे दिन ऐसा अनुभव हुआ मानो शरीर के बंन्धन से जैसे ही वह मुक्त होती है। वैसे ही वह परमात्मा मय हो जाती है।ठीक वैसे ही जैसे ही मेरे शरीर को निजेन स्थान व एकांन्त मीलता है। वैसे शरीर का “औरा” आभामंडल विकसीत हो जाता है।और फीर वह मीलो तक फैल जाता है। यह घटना अनायास ही एक क्षण मे ही हो जाती है।लेकीन इतने फैले हुये “औरा” को एक शरीर मे एकत्र करने मे काफी समय लग जाता है। और यह विशाल फैले हुये “औरा” का प्रभाव मेरे आसपास के पुण्यवान साधको को भी अनुभव होता है। उन्हे भी अनायास ध्यान लग जाता है।मैने पुण्यवान शब्द का उपयोग यह जान के किया क्योकी बीना पुवेजन्म के पुण्यकमे के बिना ऐसे पवीत्र “औरा” मे आना भी संभव नही होता है।ठीक ऐसे ही हिमालय की साधना स्थली मे जाने के लीये भी एक आध्यात्मीक स्थीती चाहीये।क्योकी एक बार वह साधना स्थली मे प्रवेश मील जाय तो आध्यात्मीक प्रगती तो अनायास ही हो जाती है।ऐसा ही कुछ वातावरण यहॉ बन गया था। आप सभी को खुबंखुब आशिवाद      आपका अपना      बाबा स्वामी

આભામંડળ શું હોય છે?

પ્રશ્ન 24: આભામંડળ શું હોય છે? સ્વામીજી : આભામંડળ અનેક રંગોથી બનેલો એક શક્તિપૂંજ છે, જે આપના શરીરની ચારેય તરફ હોય છે. જેમ ઈંડામાં પક્ષીનું બચ્ચું હોય છે, બરાબર તે જ રીતે તેની અંદર આપ રહો છો. આપણો પડછાયો અંધારામાં નથી રહેતો, પરંતુ આભામંડળ અંધારામાં પણ જળવાઈ રહે છે...ક્યાં પ્રકારના આપ વિચાર કરો છો, તે જ પ્રકારનું તેનું નિર્માણ થાય છે... આ સ્થાયીરૂપનું નથી હોતું, વર્તમાન સ્થિતિ અનુસાર બદલાય છે... આભામંડળ દ્વારા વ્યક્તિને ઓળખી શકાય છે. ચૈતન્ય ધારા પાનાં નં.- 20.

विश्वचक्र अनुष्ठान

आज दांन्डी आश्रम मे श्री गादी स्थान मे श्री विश्वचक्र अनुष्ठान सुबह 8 बजे प्रांरभ हुआ और दोपहर12 बजे तक सपन्न हुआ । जैसे जैसे अनुष्ठान आगे बढ रहा है। वैसे वैसे श्री गुरूशक्तीधाम का आभामंडल विकसीत हो रहा है। इस अनुष्ठान मे अलग बात यह श्री गादी स्थान के उपर ही श्री गुरूशक्ती धाम भी है।श्री चक्र से निमीेत उजाे श्री मंगल मुती उपर ही स्थीत होने से वह प्राप्त उजाे को सवेत्र प्रसारीत अनायास ही कर रही है। आज दुसरा ही दिन लेकीन मुझे बाहर आना कठीण हो गया था ।

आत्मा के लिए शरीर एक वस्त्र के समान

एक बार किसी शरीर को आत्मा ने छोड़ा तो छोड़ा, बाद में लौटकर उस शरीर में वापस आने का तो प्रश्न ही नहीं उठता। शरीर क्षणभंगुर है, शरीर नाशवान है , अस्थाई है। उसे कभी भी दूसरा जन्म नहीं लेना पड़ता। इसका जीवन बहुत छोटा है जबकि आत्मा को तो बार-बार अलग-अलग शरीर धारण करना पडते हैं और आत्मा को बार-बार जन्म लेना पड़ता है। आत्मा का जीवन हजारों सालों का होता है। इसीलिए उसके लिए शरीर तो कोई मायना नहीं रखता है। इतने सारे शरीर धारण किए उसमें से एक शरीर , बस इतना संबंध। अब मनुष्य का ही देखो। मनुष्य अपने जीवन में कितने जगह, कितने कमरों में सोया उसे याद है क्या ? नहीं। पता नहीं। इतने बड़े जीवन में कितने स्थानों पर गया, कितने कमरों में उसने अपनी रातें गुजरी , उसे कुछ भी याद नहीं रहता। यह भी ठीक वैसा ही है। मनुष्य जिस प्रकार से बचपन से लेकर बुठापे तक कितने वस्त्र पहनता है, उसे याद रहता है क्या ? नहीं। यह ठीक वैसा ही है। आत्मा के लिए शरीर एक वस्त्र के समान ही है। आपका बाबा स्वामी

जीवंत सद्गुरु

जीवंत सद्गुरु से जुड़कर , वास्तव में , हम जीवंत शक्तियों के साथ जुड़ जाएँगे। और जीवंत शक्तियाँ आज की होती है,  इसलिए आज के अनुसार ही होती है। इसी कारण उनके साथ हमारा जीवन एक प्रवाह में कब राजी-ख़ुशी से बीत गया, उसका हमें पता भी नहीं चलता है। यह सामूहिक शक्ति हमें हमारे जीवनकाल में एक सुरक्षाकवच प्रदान करती है। हि.स.योग - ३ -३५

नवकार मंत्र

"  मनुष्य के जीवन में कभी-कभी भूत, प्रेत और पिशाच का भी डर होता है।और ये भी मनुष्य को जीवन में  अलग-अलग तरीकों से तंग करते हैं।इस प्रकार की ,भूत प्रेतों और पिशाचों  की तकलीफों से भी इस मंत्र से  मुक्त्ति मिलती है।अब प्रश्न है-- ये भूत बनते ही क्यों हैं? मनुष्य के जीवन में कोई भी कामना या वासना जब बहुत बड़ी हो जाती है और वह पूर्ण नहीं होती है तो उस वासना को पूर्ण करने के लिए मनुष्य भूतयोनि में जाता है और अपनी वासना को पूर्ण करता है। मनुष्य को वैरभाव भी इस योनि में जाने के लिए उसे प्रेरणा देता है।सतत किसी के प्रति वैरभाव रखने से वह इतना अधिक हो जाता है कि वह मृत्यु के बाद भी समाप्त नहीं होता है।और उस वैरभाव के कारण  वह आत्मा दूसरा जन्म भी नहीं ले पाती है और फिर वह भूतयोनि में जाती  है। पथभ्रष्ट योगी भी भूतयोनि में जाते हैं।मनुष्य जीवन में कई ऐसे पाप करता है जिन्हें  करने पर उसे भूतयोनि प्राप्त होती है। भूतों की बाधा से मनुष्य को बहुत पीड़ा होती है।इस मंत्र के प्रभाव से उन भूतों को भी मुक्त्ति मिलती है और मनुष्य भी उनकी तकलीफों से मुक्त्त होता है।" "इस जंगल में कई जंगली प्

જો અમે સમર્પણ મેડીટેશન કરીએ તો શું અમે પોતાના ધર્મનું પાલન કરી શકીએ છીએ? તેની ધાર્મિક ક્રિયાઓ કરી શકીએ છીએ?

પ્રશ્ન 21: જો અમે સમર્પણ મેડીટેશન કરીએ તો શું અમે પોતાના ધર્મનું પાલન કરી શકીએ છીએ? તેની ધાર્મિક ક્રિયાઓ કરી શકીએ છીએ? સ્વામીજી : હું જ્યારે દારૂ પીવા માટે મનાઈ નથી કરતો તો આપને ધાર્મિક ક્રિયા કરવા માટે કેમ મનાઈ કરું? કારણ કે બંને શારીરિક સ્તરે છે? હું જયારે ખરાબ કાર્ય (દારૂ પીવા) માટે મનાઈ નથી કરતો તો સારા કાર્ય માટે કેમ મનાઈ કરું? ધર્મ તે છે જે આપણને જન્મ સાથે મળે છે અને જે ઘરમાં પણ આપણો જન્મ થાય છે તે ધર્મ આપણી સાથે જન્મથી જોડાઈ જાય છે. કોઈપણ ધર્મમાં આપણે જન્મ લઈએ છીએ, તે આપણી ચોઇસ (પસંદ) નથી હોતી. આપણે જયારે એક સીડી (ધર્મરૂપી સીડી) પર જન્મ્યા છીએ અને બધાની સીડી અલગ-અલગ હોય શકે છે. આપણે સીડી પર જ બેસી રહેવાનું નથી પરંતુ સીડીનો ઉપયોગ કરીને મકાન સુધી પહોંચવાનું છે. બધાની સીડીઓ અલગ-અલગ હોઈ શકે છે, પરંતુ મકાન તો બધા માટે એક જ છે. મધુચૈતન્ય : ઓક્ટોમ્બર-ડીસેમ્બર, 2008.