अपेक्षा रहीत दान आध्यात्म का प्रवेशव्दार है।

आज सासांरीक सामान्य मनुष्य जो
दिन भर लेनदेन और नफा नुकसान का ही सोचते रहता है।
सारे प्रयास दिन भर पाने के ही होते है।दिनभर कैस मीले याने दिन भर केवल और केवल लेने का ही भाव होता है।जहॉ सदैव पाने का ही भाव है, वहॉ दिनभर की प्रक्रीया विरूदध जाकर “अपेक्षा” रहीत रह कर देना“दान” है।

यह आध्यात्म का प्रवेश व्दार है,क्योकी यह सांसारीक नही है,यह सांसारीक लेनदेन से परे है,यह व्यवहार से परे है।

इस लीये”दान को महाधमे” कहा है।
दान देना है,लेना कुछ भी नही है,वह दान है।

दान के साथ दक्षिणा भी दी जाती है, वह इसलीये की आपके कारण हममे दान देने का भाव पैदा हुआ। इसलीये आपको “ धन्यवाद”।

यह गहन ध्यान अनुष्ठान मे ४५ दिन आत्माबन कर रहे,आत्मा की कोई अपेक्षा नही होती।

आप सभी को खुब-खुब आशिेवाद।
                    
आपका अपना
बाबा स्वामी
28/12/2017

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