समर्पण वसुधैव कुटुम्बकम
"शांति" आत्मा का शुध्द भाव है, यह आत्मा से ही प्राप्त हो सकता है। वह कभी पुस्तक से या हथियारों से नहीं आ सकती है। हथियारों से तो आप दूसरे को मार ही डालते हैं। फिर शांति का प्रश्न कहाँ रहता है?
राष्ट्र सुरक्षा के नाम पर युद्ध की तैयारी ही करते रहते हैं। और सभी राष्ट्रों का धन का बड़ा हिस्सा हथियारों और फौज पर ही खर्च होता है , जबकि इन दोनों बातों से शांति नहीं आ सकती है। जबकि बातें सभी राष्ट्र विश्वशांति की करते हैं। यानी 'मुँह में राम और बगल में छुरी' वाली बात प्रतीत होती है। इन प्रयत्नों से कभी भी विश्व में शांति नहीं आ सकती है क्योंकि इनके प्रयत्न ही गलत दिशा में हैं। सही दिशा में प्रयत्न कोई भी राष्ट्र नहीं कर रहा है।
प्रत्येक राष्ट्र का प्रयत्न आत्मकल्याण की ओर होना चाहिए।
"आत्मशांति से ही विश्वशांति" प्राप्त की जा सकती है।
हिमालय का समर्पण योग ६/१५६
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