चैतन्यप्रवाह...अंदर से बाहर--2
प्रश्न 40 - साधक : अगर ये (वाइब्रेशन्स) अंदर से बाहर जाते हैं, तो हम यह क्यों कहते हैं कि हमें वाइब्रेशन्स "मिले थे" , "प्राप्त हुए" ?
स्वामीजी : वास्तव में आपको जो अनुभव हुआ, वह आपके चक्रों के साफ होने का अनुभव है | जिस प्रकार एक गंदे बोतल को पानी से साफ करने के बाद यह नहीं कहना पड़ता है कि साफ हवा 'अंदर आ जा', वह स्वयं चली आती है | ठीक उसी प्रकार, जैसे हमारे चक्र साफ होते जाते हैं, वैसे-वैसे ही वह वैश्विक चैतन्य हमारे अंदर प्रवेश करता जाता है और हमें सुंदर-सुंदर अनुभूतियां प्राप्त होने लगती है |
मधुचैतन्य : अक्टूबर,नवंबर,दिसंबर-2004
चैतन्य धारा
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