अंतर्मुखि

चैतन्य महोत्सव 
परम  पूज्य स्वामीजी
दांडी  ७ - ११ - २०१६

जितना  हम  अंतर्मुखि  होने  के  लिए  करेंगे , तो  आनंद  किसमे  है ? दर्शन  में  नही  है ,दर्शन  की  आवशकता  ही  नही  है । एक  बार  तुम  अंतरमुखी  हो  गए , एक  बार  तुम  तुम्हारे  आत्मा  के  करीब  पहुँच  गए , आत्मा  के  पास  रहना  सीख  गए , तो  बादमें  इन  सब  चीज़ों  की  आवशकता  ही  नही  है । तुम  तुम्हारे  ही  मस्ती  में  मस्त  रह  सकते  हो ! तो.....मेरा  परमात्मा , मेरा  आत्मा  है ! वोही  आत्मा , जिस  आत्मा  ने  प्रत्येक  क्षण -क्षण  के  ऊपर , प्रत्येक  स्थान  के  ऊपर , प्रत्येक  जगह -जगह  मेरा  मार्गदर्शन  किया  है - क्या  करना  चाहिए ,क्या  नही  करना  चाहिए , क्या  योग्य  है ,क्या योग्य नही है।

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