स्वामीजी, आप हमें हमेशा कहते हैं कि हमारा चित्त आपके सूक्ष्म शरीर पर होना चाहिए, स्थूल शरीर पर नहीं | हमें कैसे पता चले कि हमारा चित्त आपके सूक्ष्म शरीर पर है ?
प्रश्न 41 - स्वामीजी, आप हमें हमेशा कहते हैं कि हमारा चित्त आपके सूक्ष्म शरीर पर होना चाहिए, स्थूल शरीर पर नहीं | हमें कैसे पता चले कि हमारा चित्त आपके सूक्ष्म शरीर पर है ?
स्वामीजी : एक स्थूल शरीर द्वारा इतने सारे लोगों की कुंडलिनी शक्ति की जागृति होना असंभव है | कोई शरीर पर्याप्त नहीं है, जो इतने सारे लोगों के आत्मा की जागृति कर सके | यह तो जन्म-जन्म की इच्छाशक्ति है | जागृति, चैतन्य का माध्यम स्थूल शरीर हो सकता है | परंतु यह सिर्फ माध्यम है | सूक्ष्म शरीर चैतन्य का भंडार है | जब भी आपको ऐसा प्रश्न उठे कि मेरा चित्त सूक्ष्म शरीर पर है कि नहीं है, तब आप अपने दोनों हाथ सामने रखकर चित्त को सहस्त्रार पर रखना अगर आपके दोनों हाथों से चैतन्य की लहरियाँ फूट पड़ी, तब समझ लेना कि आपका चित्त सूक्ष्म शरीर पर है, अन्यथा नहीं |
मधुचैतन्य : जुलाई,अगस्त,सितंबर-2002
चैतन्य धारा
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