अनुभूति

जय बाबा स्वामी

मेरी प्रथम अनुभूति

मैं २०१३ में शिरडी सपरिवार गई थी। मैंने साईबाबा से प्रार्थना की थी कि मेरी गोद भर जाएगी तो बच्चे को लेकर आपके दर्शन को आऊंगी।  इसी कारण मेरी बेटी को दर्शन करवाने वहाँ गई थी । वहाँ जब दर्शन कर रही थी तब साईबाबा से बातें कर रही थी कि मैं अगर आपके जीवन काल में होती तो... आपको पानी से दिया नहीं जलाना पडता, मैं आपको जरूर तैल देती..पर काश..। बाहर निकलते समय मुझे किसिने पूछा कि आप शिबिर में आई हो? मैंने मना कर दिया, क्या मालूम..समर्पण की ही शिबिर थी?
बाद में एक रिटायर्ड डॉक्टर के बार-बार कहने पर रविवार को नाभि चक्र के दिन ही शिबिर पहुँची। प्रवचन में साईबाबा का नाम लिया और मैं खुश हो गई। हाथ में झुनझुनी की अनुभूति भी हुई।
फिर तो मे २०१५ में गुरुदेव खुद आए, डॉक्टर शिबिर के लिए। पक्का इरादा था शिबिर का, और गुरुदेव की वाणी से अनायास जुड गई।
नियमित सेन्टर पर 45 दिन के अनुष्ठान के लिए जाने लगी। 8 दिन की शिबिर नहीं की थी अबतक... । सिर्फ सप्ताह के अंदर कुण्डली जागरूक हो गई और नीचे से एक धक्का लगा, पर तब चक्र शुद्ध नहीं थे। तो मेरा पूरा शरीर हिलता था। मैं अकेले ही एसे हिल रही थी।
फिर किसी ने कहा, शिबिर करो, तो शिबिर में भी शरीर हिलता था।  एक दो लोग मुझे देखकर शायद हँसते भी थे। पर मैंने उन पर ध्यान नहीं दिया। फिर हिलना बंध होने लगा, पर झुकना चालु हो गया।
एक अनुभवी साधक को आपबीती सुनाई, उन्होंने विभाकर जी की बुक पढने कौ दी। जिसमें प्राण अपान के जुडऩे की क्रिया में क्या होता है उसके चित्र दिए थे। मेरे साथ वो सब हो रहा था... सब यौगिक बंध अपने आप हो रहे थे। बाद में गुरुदेव ने अंबरीष जी और शाश्वती जी को जब अनुभूति करवाई, वो पढी तो...यह तो मेरे साथ सब हो ही रहा था। तब मेरे मन को समाधान मिला की नहीं चक्र शुद्ध हो गए है।

डाक्टर धरा
गांधीनगर

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