विश्व चक्र अनुष्ठान का सातवा दिन

आज अनायास ही आते ही पुणे समपीेत भाव के साथ अतीसुक्ष्मरूम
से श्री गादीस्थान के के श्री यंन्त्र के
साथ समरसता स्थापीत कर ली और
जब इस स्थान से समरसता स्थापीत
होगयी तो वही से सुक्ष्मभाव के साथ
उपर की श्री मंगल मुतीे के सांथ जुड
गया और बडी सुंक्ष्म उजाे के साथ
मुलांधार से सहस्त्रार चक्र तक संफर
कर अपनी उजाे को आकाश मे जाते
देखा और वह उजाे वहॉ तब तक स्थापीत रही जब तक की दोनो ही स्थानो मे समरसता स्थापीत नही हुयी
उपर से नीचे का सब दिख रहा था
और लगा की ब्रम्हाड कीतना विशाल
पृथ्वी तो एक भाग है।और पृथ्वी मे एक मनुष्य की हैसीयत ही क्या है।
लेकीन फीर भी मनुष्य “मै” के अज्ञानता मे ही जिवन व्यतीत करता
है।जब नीचे वापस आने का प्रयास किया तो नीचे तो तुंफान सा आ गया
मानो प्रकृती मे ही एक भुचाल आ गया
हो।मुझे वापस आने के लिये मैने अपने
ही बाल नीचे स्थापीत कीये थे।और
उसी के कारण उजाे का वापस शरीर
मे आना संभव हुआ। लेकीन जो दोनो
स्थानो मे समरसता स्थापीत करना थी
वह हो गयी थी।आज का अनुष्ठान
सुबह 8 बजे प्रांरभ हुआ और 5 बजे
बाद तक चला ।
आप सभी को खुबखुब आशिेवाद

आपका अपना
बाबा स्वामी
समपेण आश्रम दांन्डी गुजरात
27/12/2018

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