सामाजिक जीवन और आध्यात्मिक जीवन को संतुलित कैसे रखा जा सकता है ?
प्रश्न 34 : सामाजिक जीवन और आध्यात्मिक जीवन को संतुलित कैसे रखा जा सकता है ?
स्वामीजी : वास्तव में, ऐसे कोई दो जीवन नहीं है | जैसे मैं बोलता हूं कि नहीं, कई बार आपके भीतर अगर समस्या है, आपके भीतर अगर प्रॉब्लम है, तो आपको बाहर प्रॉब्लम आएगी | आपको अगर भीतर समस्या नहीं है, आपको अगर भीतर प्रॉब्लेम नहीं है, तो आपको बाहर प्रॉब्लम नहीं आएगी | यानी जो हमारे अंदर है, जो हमारे भीतर है, उसी का प्रतिबिंब, उसका ही रिफ्लेक्शन हमको हमारे बाहर के जीवन में दिखता है | इसलिए बाहर के जीवन में सुधार चाहते हो, सामाजिक जीवन में सुधार चाहते हो, तो आप आपके भीतर की स्थिति में सुधार करो, तो बाहर सुधार खुद-ब-खुद हो जाएगा | क्योंकि जब आप ध्यान करोगे, मेडिटेशन करोगे तो आपके भीतर एक चेंज आएगा, भीतर एक बदलाव आएगा और उस बदलाव का प्रभाव आपके आभामंडल के रूप में, आपके ऑरा के रूप में बाहर भी नजर आएगा | इसलिए आध्यात्मिक स्थिति सर्वोपरि है | अगर आपकी अध्यात्मिक स्थिति अच्छी होती है, तो बाकी स्थितियाँ खुद-ब-खुद बदल जाएँगी | वे अलग नहीं है | दो परिवेश नहीं है, एक ही है | अंदर का ही प्रभाव बाहर नजर आता है |
चैतन्य महोत्सव 2009
मधुचैतन्य : अक्टूबर,नवंबर,दिसंबर-2009
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