ध्यान के दो पहिए

ध्यान के भी दो पहिए हैं। एक , नियमित ध्यान करना और दुसरा , सामूहिक ध्यान करना।
सबेरे का ध्यान आप आपके लिए करो। कुछ नहीं , अकेले में किसी गच्ची पे जाके बैठो , किसी गार्डन में जाके बैठो कि आपके दस फीट में कोई नहीं हो या एखादे रूम में अपने-आपको बंद कर लो , उस रूम में ध्यान करो। तो उससे क्या होगा मालूम है? धीरे-धीरे , धीरे-धीरे तुम्हारा आभामंडल विकसित होगा। बडा होगा , थोडा-थोडा , थोडा-थोडा , थोडा-थोडा , थोडा -थोडा ..दो फीट , चार फीट , पाँच फीट , दस फीट , बीस फीट

और दुसरा सामूहिकता में जाके ध्यान करो, सेंटर पे जाके ध्यान करो। सेंटर पे जाके ध्यान करने से क्या होगा? तुमको तुम्हारे  चित्त का नियंत्रण करना आएगा। होता है ना , कई बार। कई बार साधक अकेले ध्यान करके चित्त को खूब स्ट्राँग कर लेते हैं। चित्त को खूब मजबूत कर लेते हैं , चित्त को खूब सशक्त कर लेते हैं लेकिन नियंत्रण नहीं रख पाते और छ:महिने के बाद में फिर उनकी स्थिति एकदम ही खराब हो जाती हैं। क्यों ? क्योंकि नियंत्रण नहीं रखा।

तुम  चित्त को स्ट्राँग करते हो और तुम्हारी आदत से बाज नहीं आते। तुम्हारी आदत है इसके दोष देख , उसके दोष देख , उसमें चित्त डाल। जब तक तुम्हारा चित्त स्ट्राँग नहीं था तब तक कोई तकलीफ नहीं थी लेकिन जैसे ही स्ट्राँग हो गया तो क्या वो ग्रहण करेगा ना! तुम दिन में दस लोगों के दोष देखोगे , लोगों के दोष ग्रहण करोगे और कचरे का डब्बा हो जाओगे, डस्टबिन हो जाओगे। क्योंकि सबका कचरा इकठठा कर लिया।

                         समर्पण ग्रंथ

(समर्पण "शिर्डी" मोक्ष का द्वार है।) पृष्ठ:१०९

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