गुरुसेवा

गुरु-सान्निध्य में गुरु-सेवा भी आप कर सकते हैं। गुरु-सेवा का यह अर्थ नहीं कि अस्सी हजार लोग आकर मेरे पैर दबाने लग जाओ तो पैर ही नहीं रहे। गुरु-सेवा का अर्थ गुरु ने जो कष्ट लेकर , गुरु ने जो तकलीफें लेकर हमें एक शक्ति का अंश दिया है , उस अंश को प्रामाणिकता से ध्यान करके वृद्धिगत करना ही गुरु-सेवा है। ऐसी गुरु-सेवा आप आपके घर पर बैठ कर भी कर सकते हैं।
जो मिला है उसको वृद्धिगत करना , उसको बढ़ाना। अगर ऐसा करते है तो भी ये एक प्रकार की गुरु-सेवा ही है।

          ..बाबा स्वामी
         महाशिविर २००४

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