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Showing posts from April, 2019
गुरुदेव प्रणाम         कल की मीटिंग में ANI चेनल से सुरेशभाई आये थे उन्होंने अपना अनुभव भेजा हे આજનો અનુભવ શબ્દમાં બયાન કરવો મુશ્કેલ છે.એક અલોકીક અનુભૂતિ અને ચૅતના નો સંચાર જે રીતે થયો તે અદભુત હતો.એક જબરજસ્ત  ઉર્જાનો થ્રો આવતો હતો.જેમ જેમ સમય વીતતો ગયો તેમ અમારા પર જાણે વિશેષ કૃપા વર્ષી રહી હતી.પ્રશ્નો નું માર્ગદર્શન અદભુત બેજોડ  અને સચોટ રહ્યું.આટલા ટૂંકા સમયમાં આ અનુભૂતિનો ઉત્સવ માની ન શકાય તેવો રહ્યો.સાવ નજીકનું ઈશ્વરીય તત્વ અમારી સાથે જોડાયેલું રહ્યું.  સુરેશ રાજકોટ आज परम पूज्य स्वामीजी के सानिध्य में कुछ समय बिताने का अवसर प्राप्त हुआ। ये समय जीवन के अत्यंत यादगार रहा। ऐसा लगा जैसे  अस्तित्व हम पर बरस रहा हो। गुरु के दर्शन मात्र से ह्रदय जंकृत होता हैं तो आज तो स्वयं गुरुजी के दर्शन और आशीष प्राप्त हुए।  ध्यान, परम् तत्व के साथ अनुसंधान सब बातें सुनी,पढ़ी थी। इतनी गहन बातों को स्वामीजीने कितनी सरलता से बताया।  प्रश्न तो थे, जवाब संतुष्ठ हो जाये ऐसे मिले। भाव जगत में आज डूबने का अवसर मिला। अपने आप से संवाद करने के लिए द्वार खुले। आज जो हुआ उसे अनुभव नही,अनुभूति कहेंगे। जीवन मे

ध्यान का बीज

       ...पूर्वजन्म के अच्छे कर्मो से आपको 'सद्गुरु' के माध्यम से परमात्मा ने ध्यान का 'बीज' दिया है |  वह बीज पाकर भी आप अगर उसे वृक्ष न बना पाए, तो आपके जैसा  दूर्भाग्यशाली कोई व्यक्ति नही है | आप जो कुछ समय गवां रहे हो, यह अंतिम क्षणों मे कुछ भी काम नही आयेगा | धन, संपत्ती, सभी घरवार, रिश्तेदार छोडकर अकेला...अकेले 'आत्मा' के साथ अंतिम सफर करना होगा | जब तक शरीर मे आत्मा है, तभी तक सब कुछ है | बाद में तो अपने सगे वाले चंद घण्टों में शरीर फूंक देंगे | क्योंकि आत्मा के बिना तो शरीर भी 'बदबू' मारने लग जाता है | अभी भी जाग जाओ और केवल अपने दिन की १४४०(1440)  मिनिट मे से ३० मिनिट अपने आपको देना प्रारंभ करें |         जैसे मैं कहता हूं, आप आपके केवल 30 मिनिट मुझे दान करो | क्या है, जो वस्तू दान की जाती है, उसपर हमारा कोई अधिकार ही नही रहता | आप अगर ३० मिनिट दान करोगे, उन ३० मिनिट पर आपका कोई अधिकार ही नहीं होगा | फिर आपका दिन २३|| (साढे तेईस) घण्टे का ही होगा | आप केवल 30 मिनिट मुझे दान करके शांत बैठो | आगे का सब गुरूशक्तियॉं  कर लेंगी | हॉं !  कोई भी '

क्षमा

आपके मन में किसी के भी प्रति नफरत हो , घूणाभाव हो , आप उसे क्षमा कर दे। क्योंकि क्षमा करना ही आपके हाथ में होता है। लेकिन क्षमा केवल अपने मन से ही करने की है , उस व्यक्ति के जाकर पैर नहीं पड़ना है , क्योंकि वह व्यक्ति तो बिच्छू है , आप क्षमा माँगने भी जाओगे तो भी कटेगा क्योंकि काटना बिच्छू का स्वभाव होता है। किसी बुरे व्यक्ति को क्षमा करना याने उसे अपने चित्त से निकाल फेंकना। अब कोई लोग बोलते हैं हम क्षमा नहीं कर सकते। यह तो ऐसा ही है कि बिच्छू का जहर आपके भीतर है और आप कह रहे हैं कि आप वह जहर निकालकर फेंकना नहीं चाहते । अब अगर बिच्छू का जहर आपने नहीं फेंका तो नुकसान आपका ही है , आप ही मरोगे। यानी ऐसे बुरे व्यक्तियों को , बुरी धटनाओं को हमें हमारे जीवन से निकलकर फेंकना है। अगर आप निकाल सके तो ही आपका चित्त शुद्ध हो सकता है। यानी आध्यात्मिक प्रगति के लिए चित्तशुद्धी आवश्यक है। क्योंकि यह चित्त की अशुद्धी हमें मानसिक रूप-से परेशान करती है। यह चक्र खराब होने से मनुष्य में मानसिक बीमारियाँ होती हैं। दूसरा , आप जिसे मनुष्य को दुश्मन समझते हो , उससे आप चित्त के मध्यम से जुड़ जाते हो और अगर आपक

मन

मन का वो भाव है जो शरीर से अधीक सुख प्राप्त करते  है वह शरीर से दुख भी अधीक प्राप्त करते  है घडी के पडुलम जैसी स्थीती है जो जीसे प्रेम अधीक करते  है वह उसीसे गुस्सा भी अधीक करते  है l ~आपका अपना, बाबा स्वामी (परम पूजनीय सद्गुरु श्री शिवकृपाबन्द स्वामीजी)

मूर्ति पूजा प्राईमरी है।

मूर्ति पूजा प्राईमरी है। तो क्या हमें जीवन भर प्राईमरी में ही बैठे रहना है? हमें प्रगति भी करना है। सन्त ज्ञानेश्वर जी ने इस शरीर को ही मन्दिर कहा है। और तालु भाग इसका प्रवेश द्वार है। वास्तव में चित्त को भीतर ले जाने पर ही  प्रगति संभव है। ~परम पूजनीय सद्गुरु श्री शिवकृपानंद, स्वामीजी शिर्डी महाशिविर 2018, पांचवा दिन

वसुधैव कुटुंबकम

गुरुपूर्णिमा के पावन पर्व पर ,हमारे पूर्वजों ने जो एक  स्वप्न देखा था, हमारे पूर्वजों ने हमारे सामने आनेवालेा विश्र्    की एक परिकल्पना प्रस्तुत की थी, ' वसुधैव कुटुंबकम् ' , उस ' वसुधैव कुटुंबकम् ' की   कल्पना को फिर से एक बार याद करने का, फिर से एक बार नए सिरे से , एक नए दृष्टिकोण से , एक नए  आयाम से सोचने का प्रयास,  अगर आज हम करेंगे तो हमारे उन  पूर्वगूरूओं को सही अर्थ मे गुरुदक्षिणा होंगी । ' वसुधैव कुटुंबकम् ' यानी सारा विश्व , विश्व में रहनेवाला प्रतेक मनुष्य उसमें शामिल हैं ।                         ~परम पूज्य सद्गुरु श्री शिवकृपानंद स्वामीजी, समर्पण ध्यान योग के प्रणेता २००९,पुष्कर(अजमेर)

प्रण

💎 क्या  स्वामीजी  की  कठोर  साधना  का  लाभ  हम  उठाएंगे  और  आजन्म  अपना  दूषित  आभामंडल  स्वामीजी  से  स्वच्छ  करवाएँगे ?   नही ! कदापि  नही !! अनजाने  मे  भूल  हो  गई ,आगे  न  होगी ।आइए , प्रण  करे : 💎 स्वामीजी  के  स्थूल  सानिध्य  की  इच्छा  नही  रखेंगे । 💎 मनो -शारीरिक  रुप  से  संपूर्ण  स्वस्थन  होंगे , तो  स्वामीजी  के  समक्ष  नही  जाएँगे । 💎 नियमित  ध्यान  कर  चित्त  शुद्ध  रखेंगे । 💎 सभी  के  प्रति  स्नेहभाव  रखेंगे । 💎 " मै " का  भाव  समाप्त  कर  परम  आनंद  की  स्थिति  मे  रहेंगे । ✍. . . . . . . . . . . . वंदनीय पूज्या गुरु माँ समर्पण ध्यान

आत्मा ही आपका गुरु

आत्मा ही आपका गुरु है। आपके आत्मा को क्या लग रहा है, क्या अनुभव हो रहा है, बस उसे गुरु बनाओ। आपके अनुभवों को गुरु बनाओ। मुझे "मत चिपको", मुझे "मत पकडो" क्योकि मैं भी बस 'माध्यम' हुँ। माध्यम मार्ग रहता है, मंजिल नहीं होता। रास्ते को ही पकडकर बैठे रहोगे तो अपनी 'मंजिल' तक पहुंचाेगे कैसे?  में मंजिल तक पहुंचकर स्वयं ही समाप्त हो जाता हूँ क्योंकि रास्ता मंजिल के पास जाकर समाप्त होगा ही। सद्गुरू भी अपना कार्य' हों जाने के बाद अपने शरीररूपी माध्यम को छोड देगा। तो वह खुद जो छोडने वाला है, उसे आपको पकडने कैसे देगा। सदुगुरू के सान्निध्य में  रहनेवाली सामुहिक चैतन्य शक्ति का उपयोग करके आप परमात्मारूपी(मोक्षरूपी) मंजिल तक पहुंचे यही मेरी शुद्ध इच्छा है । ~सद्गुरु श्री शिवकृपानंद स्वामीजी ~समर्पण ध्यान ~आध्यात्मिक सत्य pg-94-95

गुरु पूर्णिमा के कार्यक्रम हेतु एक साधक के लिए न्यूनतम मानक मापदंड

|| जय बाबा स्वामी || सभी आचार्य/संचालक एवं साधक भाई बहनों को मेरा नमस्कार, पिछले कुछ दिनों से बहुत से आचार्य एवं शिबिर संचालक के द्वारा भी एक प्रश्न बार-बार पूछा जा रहा है । *किसी भी गुरु पूर्णिमा के कार्यक्रम हेतु एक साधक के लिए न्यूनतम मानक मापदंड क्या होने चाहिए ? क्या शिबिर करने के बाद 45 दिवसीय अनुष्ठान पूर्ण करने पर वह गुरु पूर्णिमा का फॉर्म नहीं भर सकता ?* बताए हुए प्रश्न व्यवस्थापन से संबंधित नहीं थे, क्योंकि व्यवस्थापन में तो मात्र हमें रजिस्ट्रेशन लेकर उन साधकों की व्यवस्था ही करनी होती है ।  *गुरु के द्वारा दी हुई गुरु दीक्षा का अत्यधिक महत्व गुरु पूर्णिमा के कार्यक्रम का होता है, एवं यह कार्य तो मात्र हमारे परम पूज्य गुरुदेव ही कर सकते हैं । इसी कारण मैंने इस प्रश्न का उत्तर सीधे नहीं दिया, मैंने सभी को यही बताया कि इस बारे में मैं गुरुदेव से चर्चा करके फिर ही उत्तर दे सकता हूं ।* गुरुदेव से मेरी इस बारे में चर्चा हुई, हमारे परम पूज्य गुरुदेव ने बताया कि *"जो भी व्यक्ति शिविर के पश्चात 45 दिवसीय अनुष्ठान पूर्ण कर लेता है उसे गुरु पूर्णिमा में आने का अधिकार है ।&qu

मां का जगाना

पूरे 24 घंटे में से सिर्फ 30 मिनिट , मैं जैसा बैठता हूँ वैसा बैठो। कोई देर नहीं हुई हैं। जब जागो तभी सबेरा। कुछ नहीं कल से चालू करो ना। कल से एक आधा घंटा बैठना चालू करो। बाकी सब मैं देख लूगा। अरे सिर्फ बैठो तो सही बाबा। तुम लोग ना इतने बदमाश हो , मैं तुमको 3:30 से 5:30 के बीच मे कई बार आकर उठाता हूँ। लेकिन तुम उठ करके फिर सो जाते हो। आप देखो बराबर कई बार आपकी नींद खुल जाती है, 3:30 और 5:30 इसके बीच के टाइम में खुलती है। थोड़ी सी भी अगर तुम्हारे मे इच्छा है, थोड़ी सी भी। एक कदम आप मेरी ओर चलो तो मैं दस कदम आपकी ओर चलता हूँ। और आप को बराबर एक सही समय पे ,सही स्थान पर उठाता हूँ । लेकिन उठाने  के बाद भी आप फिर से सो जाते हो तो सोए हुए को कौन उठा सकता है। कभी भी देखो कभी भी ऐसी नींद खुले ना , तो तुरंत उठ कर के बैठो और ध्यान करो, स्वामीजी ने मुझे उठाया है।  नियमित ध्यान करो और उस मुक्त स्थिति को अपने इसी जीवन काल में प्राप्त करो। ~सद्गुरु श्री शिवकृपानंद स्वामी ~समर्पण ध्यान

अपने चित्त को अपने भीतर रखना आसान नहीं

अपने चित्त को अपने भीतर रखना आसान नहीं होता क्योंकि उसे भीतर जाने के लिए कोई कारण होना चाहिए , कोई उद्देश होना चाहिए। जबतक कोई उद्देश न हो तो हमारा भी अपने चित्त पर नियंत्रण न होगा। क्यों भीतर जाना है , यह उद्देश हमें हमारे चित के सामने रखना होगा ,तभी वह भीतर जाएगा। भाग ५

दूर ही रहो और चैतन्य का आनंद लो

जय बाबा स्वामी        जो एक बार दूर हो गया वह वापस कभी नही आता । इससे अच्छा है "दूर ही रहो "और चैतन्य का आनंद लो। मैं आपके शरीर से भले ही दूर हूँ लेकिन आप आँख बंद करके देखो तो आप मुझे अपने "हृदय" में ही अनुभव करोगे । क्योकि अब मैं वही हूँ । आप सभीको खूब -खूब आशीर्वाद। ~सद्गुरु शिवकृपानंद स्वामीजी, समर्पण ध्यान

Shree Baba Swami Dham

Before incarnation of every Guru-tatva (Guru Element), a sacred place is chosen in advance; which becomes the epicentre of divine energy. The Baba Swami Dham is not only the residence of our Living Satguru, but is also an epicentre of the power where His Holiness Swamiji has established the divine energy. His Holiness Swamiji used to conduct Meditation Workshops at different places but there was no permanent place where He could return after various workshops all over the world. Also, there was no permanent place for the sadhaks (disciples) to meet him personally, as He was always moving from place to place. So, it was a critical requirement and pure wish of all the sadhaks to stabilise His Holiness Swamiji and the associated Energy at one place. This sacred place was chosen at Mogar village near Navsari where in March 2002, one of the sadhaks donated his land for construction of the Dham and with the collective efforts of all the sadhaks from all over the world and blessings of Uni

परमात्मा सर्वत्र हैं

1) इस विश्व में परमात्मा सर्वत्र है | 2) वही सूर्य को, चंद्र को, पृथ्वी को, तारों को निश्चित स्थान पर रख रहा है | 3) वही भूमि पर संतुलन रख रहा है | 'पानी की मात्रा' बढ़ने नहीं दे रहा है | 4) मनुष्य 'अतिविचार' करके वैचारिक प्रदूषण कर रहा है जिससे गर्मी बढ़ रही है और उसी से 'ग्लोबल वार्मिंग' का खतरा उत्पन्न हो रहा है | 5) अधिक गर्मी बढने पर बर्फ पिघल जाएगी और सर्वत्र पानी हो जायेगा | पृथ्वी की जमीन डूब जाएगी | 6) प्रकृति का संतुलन बिगड़ जाएगा | अतिविचार से वह बिगड़ रहा है | 7) विचार करना प्रकृति के विरोध में है क्योंकि प्रकृति के साथ जुड़ जाने पर विचार नहीं रह जाते | 8) 'समर्पण ध्यान' प्रकृति से समरस होना सिखाता है | 9) समर्पण ध्यान करने से हमारा अस्तित्व प्रकृति से अलग नहीं रह जाता है | 10) परमात्मा एक अविनाशी शक्ति है जो विश्व में सर्वत्र विद्यमान है | 11) 'परमात्मा' ही सारे ब्रम्हांड का संचालन व नियंत्रण कर रहा है | 12) परमात्मा को किसी 'धर्म' के दायरे में बाँधा ही नहीं जा सकता है | 13) परमात्मा कल भी था, 'आज भी है'

सबके प्रति अच्छा भाव -- अध्यात्मिक प्रगति का सरल मार्ग

         .....मैं बार-बार सामूहिकता का जिक्र इसलिए कर रहा हूँ क्योंकि मैंने मेरा सारा अस्तित्व सामूहिकता में बाँट दिया है | तो आपको अगर मेरे साथ रहना है तो आपको सामूहिकता के साथ ही रहना पड़ेगा, कलेक्टिविटी के साथ ही रहना पड़ेगा | अगर आप कलेक्टिविटी में हो, आप मेरे साथ हो | आप सामूहिकता में हो, आप मेरे साथ हो | क्योंकि मैं सामूहिकता में हूँ | और सामूहिकता में अपनी प्रगति करने का, अपनी प्रोग्रेस करने का एकदम सरल उपाय है | एक सादा मार्ग आपको बताता हूँ - आपका ह्रदय सबके लिए खुला होना चाहिए, आपके मन में सबके प्रति अच्छा भाव होना चाहिए | सामनेवाला आपके लिए क्या सोच रहा है, उससे आपको कोई लेना-देना नहीं है | वह उसका भाव है, वह उसका क्षेत्र है, वह उसका स्तर है | वह नीचे के स्तर पर है, तुमको उसके लिए नीचे के स्तर पर जाने की कुछ आवश्यकता नहीं है | तुम तुम्हारा स्तर बनाकर रखो, आत्मा का स्तर बनाकर रखो और आत्मिक स्तर पर तुम्हारे मन में सबके प्रति अच्छा भाव होना चाहिए | सबके प्रति एक अच्छा भाव तुम्हारी खुद की आध्यात्मिक प्रगति करेगा | वह आप के प्रति कैसा भाव रख रहा है, उधर ध्यान मत दो | तुम तुम्हारी

आभामंडल

99) उनकी समाधि के आसपास कई मीलों तक उनके आभामंडल का प्रभाव देखा जाता है | 100) ये अपनी संकल्पशक्ति से उस प्रभाव को बनाए रखते हैं | 101) जिस प्रकार हम स्वच्छ, अच्छे कपड़े पहनना पसंद करते हैं, वैसे ही स्वच्छ व सुंदर आभामंडल रखना चाहिए | यह आपको कठिन परिस्थिति में, खराब स्थिति में, खराब स्थानों पर सुरक्षा प्रदान करेगा | यह आपकी सुरक्षा की छतरी है | 102) कई स्थानों पर अतृप्त आत्माओं का भी प्रभाव होता है | ऐसे स्थान-विशेष में भी आपका सशक्त अॉरा ऐसे प्रभावों से आपका बचाव करेगा | 103) ऐसे खराब प्रभाववाले क्षेत्र-विशेष में प्रायः अपघात होते ही रहते हैं | 104) यह प्रभाव कई साल निरंतर होने के कारण, उस स्थान पर स्थाई खराब प्रभाव निर्माण हो जाता है | ऐसे स्थान को शुद्ध करने से अच्छा है, हम उस स्थान को ही खाली कर दें | 105) पवित्र स्थानों पर पवित्र चित्त लेकर जाना चाहिए | तभी हम वहाँ की ऊर्जा को ग्रहण कर पाएँगे | 106) सांसारिक अतृप्ति लेकर  जाएँगे तो खाली हाथ उस 'दरबार' से भी नहीं आएंगे | लेकिन जो लेकर आएँगे, वह स्थाई आनंददायक न होगा | 107) ' गुरुस्थान' पर एक ही इच्छा होनी

समर्पण ध्यान नि:शुल्क क्यों है ?

समर्पण ध्यान..परमात्मा की देन अमूल्य प्रश्न 55 :- समर्पण ध्यान नि:शुल्क क्यों है ? स्वामीजी : समर्पण ध्यान सद्गुरु के सान्निध्य में किया गया ईश्वरप्राप्ति का सामूहिक प्रयास है |.. इस में साधक कुछ भी नहीं करता है | जो कुछ भी प्राप्त होता है, वह (आत्मज्ञान) 'उसकी' कृपा व करुणा में प्राप्त होता है |.. परमात्मा की चीज अमूल्य होती है | इसलिए यह ज्ञान भी नि:शुल्क प्राप्त होता है |.. समर्पण ध्यान से यह अमूल्य ज्ञान नि:शुल्क प्राप्त किया जा सकता है | चैतन्य धारा

સાધકની ડાયરી

સવારનો લગભગ ૭:૩૦નો સમય હશે.પુજ્ય ગુરૂદેવ સાથે અમે ત્રણ સેવાધારી દાડીના સમુદ્ર કિનારે બેસીને ચર્ચા કરી રહ્યા હતા.આસ્રમ વ્યવસ્થા તથા આધ્યાત્મિક વિષયો પર ચર્ચા ચાલી રહી હતી કે અચાનક ગુરુદેવ શાંત અને મૌન થઈ ગયા, આખો બંધ કરીને બે ઘડી અંતર્મુખી થઈ ગયા. થોડો ક્ષણો માટે અમે ત્રણેય પણ જાણે કોઈ ગહન ઘટનાના સાક્ષી થવા જઇ રહ્યા હતા.થોડી જ ક્ષણો વિતી હશે કે ગુરૂદેવ બોલ્યા,``ક્યાક તો પ્રુથ્વી પર અત્યારે ભૂકંપ આવવાનો છે અથવા ક્યાક આવી ચુક્યો છે." અને પછી બે ઘડી માટે શાંત થઇ ગયા.આવી ક્ષણે અમે ત્રણેય પણ જાણે એકદમ થથરી ગયા હતા,કાઈ પણ બોલવાની હિંમત જ નહોતી થઈ રહી.પછી સ્વામીજી પોતે જ બોલ્યા કે ધરતીની અંદરના સ્તરોમા હલચલ થઈ રહી છે.પછી મને જ આના વિશે વધુ જાણવાની ઈચ્છા થઈઅને મે પુછ્યું,``બાબા,એ કેવી રીતે ખબર પડે કે ક્યાં શુ થઈ રહ્યું છે?" પુજ્ય ગુરૂદેવે સમજાવ્યું,``જેમ તમારા શરીરમાં કોઈ પણ ભાગમા માખી બેસે છે તો તમને કેવી રીતે ખબર પડી જાય છે, માખી ક્યાં બેઠો છે,બિલકુલ એ જ રીતે હુ પ્રક્રુતી સાથે સમરસ છુ.એટલા માટે ક્યાં હલચલ થઈ રહી હોય છે તે ખબર પડી જાય છે."               આસ્રમ પરત આવીને મે તરત

सामूहिक ध्यान साधनासे हमारे शरीर पर क्या प्रभाव पड़ता है ?

सामूहिक ध्यान साधनासे हमारे शरीर पर क्या प्रभाव पड़ता है ? ऐसा प्रयोग 18 से 45 वर्ष के लोगो पर किया , उनका वैज्ञानिक तारण :    देव संस्कृति विश्व विद्यालयमें डॉक्टरों की टीम ने सामुहिक ध्यान साधना के पूर्व और उनके बादमे लोगोके परीक्षण किया उनका तारण इस प्रकार है : 1) हमारे मस्तिक के पिट्यूटरी ग्रंथिमेसे 12 प्रकारसे हॉर्मोन पैदा होते है  वो संतुलित हो कर शरीर को स्वस्थ  रखते है । 2) मनोविकार का शमन होता है । 3) मनकी शांति और प्रसन्नता का अनुभव होता है । 4) मन पर बहुत बड़ा सकारात्मक प्रभाव पड़ता है । 5) उनका प्रभाव स्थूल और  सूक्ष्म इन दोनों शरीर पर होता है । 6) अंत:स्त्रावी ग्रंथियो परभी इसका प्रभाव होता है । 7) प्राण शक्ति बढ़ती है । 8) शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य अच्छा होता है । 9) तीनो नाड़ी शुद्ध होने लगती है । 10) सामुहिक ध्यानसाधना से एक विशिष्ट वातावरण पैदा होते है ।

FOR DOCTORS

"OM"                                                                                             19-4-2019 ** *FOR DOCTORS* ** My Salutations to all Pious Souls…..                             Yesterday a very old doctor sadhak, who was a very famous ‘surgeon’ had come to meet me. He was the Chairperson of the first ‘Mahashibir’ that had been held in Navsari. He had formed 18 committees and organised a successful Mahashibir. He was one amongst the first group of people who had started ‘Samarpan meditation’ in Navsari. Despite being 88 years old, he had such a good ‘spiritual state’ that even today he could easily reach Baba Dham. He had come just because he had the desire to meet me. He had no ‘expectations’, no ‘problem’. He had come along with his family with such a pure feeling. We talked about how ‘Samarpan meditation’ had started on such a small scale in Navsari; and how today after 20 years, the Guru-karya had spread all over the world. The ‘Gujarati’ sadhaks had

જીવંત માધ્યમનુ સાનિધ્ય

તમને જ્યારે પણ જીવનકાળમા ક્યારેય કોઈ જીવંત માધ્યમનુ સાનિધ્ય પ્રાપ્ત થાય, એ સાનિધ્યનો ઉપયોગ તમે તમારી રોજબરોજની સમસ્યાઓ દૂર કરવા માટે ન કરો.એ સાનિધ્યનો ઉપયોગ દેહથી સંબંધિત બિમારીઓ દુર કરવા માટે ન કરો.દેહથી સંબંધિત કુસંસ્કાર દૂર કરવા માટે ન કરો.દેહથી સંબધિત સમસ્યાઓ દૂર કરવા માટે ન કરો.એનો ઉપયોગ અંતર્મુખી થવા માટે કરો. કારણ કે એકવાર તમે એના સાનિધ્યમાં અંતર્મુખી થવાનુ શીખી ગયા તો બાકીની બધી સમસ્યાઓ બહાર છૂટી જશે. સમર્પણ ધ્યાનયોગ ચૈતન્ય મહાશિબિર- ૯ નવેમ્બર,૨૦૧૮     મધુચૈતન્ય અંક-જાન્યુઆરી-ફેબ્રુઆરી,૨૦૧૯ પેજ-૧૪

आभामंडल

88) कोई व्यक्ति की मृत्यु होने वाली रहती है, तो उसके अाभामंडल पर काली परछाई पड़ने लगती है | 89) आभामंडल आपका जीवनसाथी है जो अंधेरे में भी साथ नहीं छोड़ता है | 90) हिमालय में रात के समय भी कई सिद्धों के आभामंडल चंद्रमासमान चमकते हुए देखे जाते हैं | 91) आभामंडल जीवन का प्रतीक है | आभामंडल है याने मनुष्य जीवित है | हालाँकी, मृत्यु के 3 दिन बाद यह समाप्त हो जाता है | इसीलिए हमारे यहाँ मरने के बाद 'तीसरा' करने का प्रचलन है | 92) सिद्धपुरुषों का आभामंडल मृत्यु के बाद भी शरीर के आसपास बना रहता है | 93) वह इसलिए बना रहता है कि सिद्ध महात्माओं का, मृत्यु के बाद 'सूक्ष्म शरीर' कार्यरत हो जाता है | सूक्ष्म शरीर से हमारा आशय उस कार्यशक्ति या साधना के शरीर से है जो साधना उन्होंने अपने जीवनकाल में की है | इसे उनकी शक्ति का शरीर भी कह सकते हैं | यह कभी नष्ट नहीं होता | 94) इस शक्ति के सूक्ष्म शरीर के कारण उनके समाधिस्थ शरीर के आसपास भी आभामंडल बना रहता है | 95) इसीलिए हमें समाधिस्थ सद्गुरु की समाधि के पास जाकर आत्मशांति मिलती है | 96) सद्गुरु के समाधिस्थ होने के बाद भी उस शरी