क्षमा

आपके मन में किसी के भी प्रति नफरत हो , घूणाभाव हो , आप उसे क्षमा कर दे। क्योंकि क्षमा करना ही आपके हाथ में होता है। लेकिन क्षमा केवल अपने मन से ही करने की है , उस व्यक्ति के जाकर पैर नहीं पड़ना है , क्योंकि वह व्यक्ति तो बिच्छू है , आप क्षमा माँगने भी जाओगे तो भी कटेगा क्योंकि काटना बिच्छू का स्वभाव होता है। किसी बुरे व्यक्ति को क्षमा करना याने उसे अपने चित्त से निकाल फेंकना। अब कोई लोग बोलते हैं हम क्षमा नहीं कर सकते। यह तो ऐसा ही है कि बिच्छू का जहर आपके भीतर है और आप कह रहे हैं कि आप वह जहर निकालकर फेंकना नहीं चाहते । अब अगर बिच्छू का जहर आपने नहीं फेंका तो नुकसान आपका ही है , आप ही मरोगे। यानी ऐसे बुरे व्यक्तियों को , बुरी धटनाओं को हमें हमारे जीवन से निकलकर फेंकना है। अगर आप निकाल सके तो ही आपका चित्त शुद्ध हो सकता है। यानी आध्यात्मिक प्रगति के लिए चित्तशुद्धी आवश्यक है। क्योंकि यह चित्त की अशुद्धी हमें मानसिक रूप-से परेशान करती है। यह चक्र खराब होने से मनुष्य में मानसिक बीमारियाँ होती हैं। दूसरा , आप जिसे मनुष्य को दुश्मन समझते हो , उससे आप चित्त के मध्यम से जुड़ जाते हो और अगर आपके दुश्मन को कोई बीमारी हो गई है , तो वह बीमारी आपको भी कुछ दिन बाद हो जाती है। क्योंकि आप चित्त के कारण उससे साथ जुड़े हुए थे। यानी आप उसकी भी बीमारियों का भोग बन जाते हो।

~परम पूजनीय सद्गुरु श्री शिवकृपानंद स्वामीजी, समर्पण ध्यान
~हिमालय का समर्पण योग
भाग - ६ - २४८

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