भाव

तो हम किसके जीवनकाल में अपना जिवन व्यतीत कर रहे हैं , कौनसे माध्यम से हम एनर्जी ग्रहण कर पा रहे हैं , उस माध्यम से हमारा कितना चित्त हैं , कितना अटेन्शन हैं , कितना भाव हैं । भाव शब्द का इसलिए प्रयोग कर रहा हूँ .. यही हमारी रिसीविंग बढ़ाता है , यही हमारी ग्रहण करने की क्षमता बढ़ाता हैं । एकच्युअली  " शिवबाबा " को परमात्मा माना ना , तो मेरी ग्रहण करने की क्षमता,  मेरी रिसीविंग १००% हो गई । यानी जितने 
अधिक-से-अधिक स्तर के ऊपर जाकर , अधिकतम स्तर के ऊपर जाकर जो मै ग्रहण कर सकता
था , वो उसकी ग्रहण करने की सर्वोच्च सीमा थी ! उस सीमा में जाके ग्रहण किया है और ग्रहण करने के बाद केवल अपने तक सीमित नहीं
रखा । अधिक-से-अधिक कितने लोगों तक पहुँचे ये प्रयास किया ।
      
  प.पु.गुरुदेव
गुरुपूर्णिमा २०१८

Comments

Popular posts from this blog

Subtle Body (Sukshma Sharir) of Sadguru Shree Shivkrupanand Swami

सहस्त्रार पर कुण्डलिनी