सबके प्रति अच्छा भाव -- अध्यात्मिक प्रगति का सरल मार्ग
.....मैं बार-बार सामूहिकता का जिक्र इसलिए कर रहा हूँ क्योंकि मैंने मेरा सारा अस्तित्व सामूहिकता में बाँट दिया है | तो आपको अगर मेरे साथ रहना है तो आपको सामूहिकता के साथ ही रहना पड़ेगा, कलेक्टिविटी के साथ ही रहना पड़ेगा | अगर आप कलेक्टिविटी में हो, आप मेरे साथ हो | आप सामूहिकता में हो, आप मेरे साथ हो | क्योंकि मैं सामूहिकता में हूँ | और सामूहिकता में अपनी प्रगति करने का, अपनी प्रोग्रेस करने का एकदम सरल उपाय है | एक सादा मार्ग आपको बताता हूँ - आपका ह्रदय सबके लिए खुला होना चाहिए, आपके मन में सबके प्रति अच्छा भाव होना चाहिए | सामनेवाला आपके लिए क्या सोच रहा है, उससे आपको कोई लेना-देना नहीं है | वह उसका भाव है, वह उसका क्षेत्र है, वह उसका स्तर है | वह नीचे के स्तर पर है, तुमको उसके लिए नीचे के स्तर पर जाने की कुछ आवश्यकता नहीं है | तुम तुम्हारा स्तर बनाकर रखो, आत्मा का स्तर बनाकर रखो और आत्मिक स्तर पर तुम्हारे मन में सबके प्रति अच्छा भाव होना चाहिए | सबके प्रति एक अच्छा भाव तुम्हारी खुद की आध्यात्मिक प्रगति करेगा | वह आप के प्रति कैसा भाव रख रहा है, उधर ध्यान मत दो | तुम तुम्हारी जगह सही रहो | वह उसकी जगह गलत है, एक दिन उसकी आँख खुलेगी, एक दिन उसको स्थिति प्राप्त होगी कि उसको पता लगेगा कि तुम तो सही थे ही, गलत वह था | लेकिन वह गलत है, इसलिए तुम गलत मत बनो | वह नीचे की सीढी पर है, इसलिए तुम नीचे की सीढी पर मत जाओ | इंतजार करो, राह देखो, एक दिन उसे भी वह स्तर प्राप्त हो जाएगा | दूसरा, आपके लिए आपके चित्त पर नियंत्रण करना आवश्यक है | ध्यान की जैसे-जैसे प्रगति होती जाएगी, ध्यान की जैसे-जैसे प्रोग्रेस होती जाएगी, चित्त की गति और तेज, और तेज होती जाएगी, (चित्त) और मजबूत होगा | और उसके साथ-साथ अगर नियंत्रण नहीं है, तो हमें परेशानी हो सकती हैं |...
परमपूज्य गुरूदेव,
गुरुपूर्णिमा, सूरत,18 जुलाई 2008
मधुचैतन्य:-जुलाई,अगस्त,सितंबर-2008
Comments
Post a Comment