उपवास

॥जय बाबा स्वामी॥

कई लोग आध्यात्मिक प्रगति के लिए ईश्वर के नाम पर उपवास रखते हैं। वह भी गलत है। साधक ने खूब अधिक भी नहीं खाना चाहिए और उपवास भी नहीं करना चाहिए। मध्यमार्ग में रहो। जब हम भोजन में से चित्त निकालने के लिए उपवास करते हैं , तो भोजन में से चित्त निकलने की जगह भोजन में चित्त अधिक जाने लग जाता हैं। फिर हर समय , हर जगह भोजन ही भोजन दिखता है। यह भी गलत है और चित्त के लिए नुकसानदायक होता है। आप ध्यान में इतने मग्न हो जाएँ कि आपको भोजन करने की भी सुध न रहे , यह उपवास है।

उपवास घटित हो जाता है। जबरदस्ती से करते हैं , वह उपवास नहीं होता। इस प्रकार से जबरदस्ती से उपवास नहीं करना चाहिए। स्वाभाविक रूप से हो जाए तो ठीक है। भोजन शरीर की आवश्यकता है।

हिमालय का समर्पण योग १/९३

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