समाधिस्थ गुरु से जीवंत गुरु तक पहुंचना - १

एक बार मैं कॅनेडा जा रहा था। तो मुंबई के एअरपोर्ट
पे कुछ सिक्यूरिटी वाले मुझे अंदर तक लेके गए। अंदर
में एक कॅबिन में बिठाया जहाँ से सीधे प्लेन में बैठना था
और कुछ नहीं था बीच में। वहाँ पे एक पुलिसवाला मुझे
खूब दूर से देख रहा था। अच्छा धष्ट-पुष्ट (हृष्ट-पुष्ट)
पुलिसवाला था। और मेरे पास में आकरके मुझे रिक्वेस्ट
करने लग गया कि मेरे सर के ऊपर आप हाथ रखो ऐसी मेरी इच्छा है। मैंने उसको कहा, "मुझे सिर पे हाथ रखने में कोई तकलीफ नहीं है, परेशानी नहीं है। परेशानी तेरे को न हो, ये परेशानी है। तू सहन कर पाएगा कि नहीं सहन कर पाएगा ये प्रश्न है।" वो पीछे लग गया - "नहीं नहीं।'' उसने दोनों पैर पकड़ लिए और चबाक, चबाक, चबाक पैर दबाने लग गया। अच्छा मुस्टंडा पुलिसवाला था। मैंने बोला, "पैर तोड़ेगा ये।" मैंने बोला, "मेरे पैर छोड़।" "तब तक पैर नहीं छोडूंगा जब तक आप मेरे सर पे हाथ नहीं रखोगे।" तो मैंने बोला, "मेरा प्लेन छूट जाएगा।" बोला, "नहीं प्लेन नहीं छूटेगा। जब तक मैं सिग्नेचर नहीं करूंगा, प्लेन नहीं उड़ेगा।'' फिर मरता क्या न करता। मैंने वो पुलिसवाले के सर के ऊपर हाथ रख दिया। (Cont..)

समर्पण ग्रंथ - १३४

(समर्पण "शिर्डी" मोक्ष का द्वार है।)  पृष्ठ:७७-७८

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