समाधिस्थ गुरु से जीवंत गुरु तक पहुंचना - २
और जैसे ही हाथ रखा ना, उसने ड्रेस के अंदर ही पूरा वहीं साष्टांग दंडवत डाल दिया। और फिर पागलों सरीका हँसने लग गया और पागलों सरीका रोने लग गया। तो पास में भी एक पत्रकार बैठी थी, उसने पूछा, "स्वामीजी ये क्या तुम्हारा शिष्य है?" मैंने बोला, "मैंने आज ही देखा इसको।" तो उसको पूछा, "तू ये क्या पागलों सरीका हँस रहा है और क्या पागलों सरीका रो रहा है?" उसने कहा, "मैं स्वामी समर्थ का भक्त हूँ।" परसों गुरुपूर्णिमा हुई थी। मैं गुरुपूर्णिमा में शामिल होने के लिए अक्कलकोट गया था और उस दिन खूब मन से प्रार्थना की थी कि स्वामी तुम्हारी कृपा में मुझे मेरे जीवन में सब कुछ प्राप्त हो गया है, अब कुछ पाने की इच्छा नहीं, बस आत्मसाक्षात्कार करा दो, आत्म अनुभूति करा दो, बस्स! और जैसे ये स्वामीजी ने मेरे सिर पे हाथ रखा मुझे परमात्मा के दर्शन हो गए।" इसलिए कहता हूँ - समाधिस्थ गुरु वह स्थान है जो जीवंत गुरु तक रास्ता बताता है। बशर्ते आप वो इच्छा रखो। वो मार्ग है, वो रास्ता है।
समर्पण ग्रंथ - १३५
(समर्पण "शिर्डी" मोक्ष का द्वार है।) पृष्ठ:७८
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