आभामंडल
35) हम अगर प्राकृतिक मनुष्य रहेंगे, तो एक बच्चे जैसे होंगे | और फिर कोई विचार भी न होंगे और आपका आभामंडल शुद्ध व निष्कलंक रहेगा |
36) हमें यह समझना चाहिए, विचार शरीर-निर्मित होते हैं | जितने विचार हम करेंगे, उतने ही हम अप्राकृतिक होंगे | और जितने अप्राकृतिक होंगे, हमारा आभामंडल उतना ही दूषित होगा |
37) इसीलिए प्रकृति के सान्निध्य में हमें विचार नहीं आते हैं और हमारा आभामंडल भी अच्छा रहता है |
38) इसीलिए प्रकृति के सान्निध्य में रहनेवाले लोगों को विचार आते हैं और उनका आभामंडल भी अच्छा रहता है |
39) भीड़-भाड़ वाले स्थानों पर देखा गया है की एक-एक व्यक्ति का आभामंडल अनेक व्यक्तियों के आभामंडल से जुड़ा रहता है | इसलिए वह व्यक्ति अपना आभामंडल अनेक लोगों से जुड़ा होने के कारण अनेक लोगों के विचार, टेंशन ग्रहण करते रहता है |
40) आज इसीलिए विचारों का प्रदूषण फैल रहा है | एक व्यक्ति नकारात्मक विचार करता है और एक व्यक्ति के आभामंडल से ये विचार अनेक व्यक्तियों तक पहुंचते हैं |
41) एक व्यक्ति तनाव में आया तो वह अपना तनाव और लोगों में बांटता है | इसीलिए तनाव में रहनेवाले व्यक्तियों के सान्निध्य में, सामान्य मनुष्य भी तनाव में आ जाता है |
42) आभामंडल व्यक्ति के विचारों से बनता है | या यह कहा जा सकता है, आभामंडल मनुष्य के विचारों की छाया है | छाया भी विचारों जैसी ही होगी |
43) अगर हम अच्छे विचारवाले, अच्छे आभामंडल वाले व्यक्तियों के सान्निध्य में रहते हैं तो हमारा आभामंडल भी अच्छा होगा | इसलिए साधकों ने अच्छे साधकों के सान्निध्य में रहना चाहिए |अच्छी संगत करो |
क्रमश: ....
अध्यात्मिक सत्य
18/03/2007, रविवार... पन्ना क्र. 98✍
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