आत्मा ही आपका गुरु

आत्मा ही आपका गुरु है। आपके आत्मा को क्या लग रहा है, क्या अनुभव हो रहा है, बस उसे गुरु बनाओ। आपके अनुभवों को गुरु बनाओ।
मुझे "मत चिपको", मुझे "मत पकडो" क्योकि मैं भी बस 'माध्यम' हुँ। माध्यम मार्ग रहता है, मंजिल नहीं होता। रास्ते को ही पकडकर बैठे रहोगे तो अपनी 'मंजिल' तक पहुंचाेगे कैसे?  में मंजिल तक पहुंचकर स्वयं ही समाप्त हो जाता हूँ क्योंकि रास्ता मंजिल के पास जाकर समाप्त होगा ही।
सद्गुरू भी अपना कार्य' हों जाने के बाद अपने शरीररूपी माध्यम को छोड देगा। तो वह खुद जो छोडने वाला है, उसे आपको पकडने कैसे देगा।
सदुगुरू के सान्निध्य में  रहनेवाली सामुहिक चैतन्य शक्ति का उपयोग करके आप परमात्मारूपी(मोक्षरूपी) मंजिल तक पहुंचे यही मेरी शुद्ध इच्छा है ।

~सद्गुरु श्री शिवकृपानंद स्वामीजी
~समर्पण ध्यान
~आध्यात्मिक सत्य pg-94-95

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