समस्या पर चित ही मत डाले और न "प्राथँना" करो

" सद्गुरू " ही वह 'पवित्र आत्मा '  है | जिसके सानिध्य में साधक अंतमुँखी हो सकते हैं |आपका चित केवल और केवल वही भीतर की और ले जा सकता है | बाकी सारी दुनिया ही आपका चित बाहर ही ले जानेवाली होती है |आप उसके सान्निध्य  में अपनी समस्याओं पर चित डालते हैं और उन्हें दूर करने की प्राथँना करते हैं |आप एक बार  प्रयोग  तो करके देखो, आप आपकी समस्या  पर चित ही मत डाले और न "प्राथँना" करो | आप आपका चित केवल चैतन्य के ऊपर रखे |और आपको सद्गुरू के सान्निध्य  में क्या अनुभव हो रहा है , सारा चित उस पर ही रखे और सद्गुरू के सान्निध्य  का पूरा -पूरा लाभ अपनी आत्मा  को लेने दो | तो आपको भी  अनुभव होगा कि आपकी आत्मा इतनी "प्रसन्न " और "सशक्त" हो जाएगी  कि आपके शरीर की समस्या वही स्वयं  दूर कर देगी |

"पवित्र  आत्मा"
पेज नं:-52 ,53

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