भूतकाल
जो बालक वर्तमान में नहीं रहता, सदैव
भूतकाल को ही याद करते रहता है, उस
बालक का चित्तरूपी शुभ वस्त्र सदैव
मलिन ही रहता है। क्योंकि वह बालक
भूतकाल को यादकर उस भूतकाल के
दाग पर और परत चढ़ा रहा है। इस
प्रकार से मनुष्य के चित्त को भूतकाल
और आसक्त्ति अस्थिर करते हैं क्योंकि
दोंनो के साथ होने पर चित्त वर्तमान मे
नहीं रहता है। और जो चित्त वर्तमान में
नहीं है, वह अस्थिर है और अस्थिर चित्त
अशक्त चित्त होता है। और एक अशक्त
चित्त से शक्त्तिशाली परमात्मा को कैसे
पाया जा सकता है ? अशक्त चित्त से
परमात्मा की प्राप्ति कभी सम्भव ही नहीं हैं।
भूतकाल को ही याद करते रहता है, उस
बालक का चित्तरूपी शुभ वस्त्र सदैव
मलिन ही रहता है। क्योंकि वह बालक
भूतकाल को यादकर उस भूतकाल के
दाग पर और परत चढ़ा रहा है। इस
प्रकार से मनुष्य के चित्त को भूतकाल
और आसक्त्ति अस्थिर करते हैं क्योंकि
दोंनो के साथ होने पर चित्त वर्तमान मे
नहीं रहता है। और जो चित्त वर्तमान में
नहीं है, वह अस्थिर है और अस्थिर चित्त
अशक्त चित्त होता है। और एक अशक्त
चित्त से शक्त्तिशाली परमात्मा को कैसे
पाया जा सकता है ? अशक्त चित्त से
परमात्मा की प्राप्ति कभी सम्भव ही नहीं हैं।
हि. का. स.यो.(1)पेज 44015
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