परमात्मा की सिम्पल डेफिनेशन

     जैसे  एक  देवता  की  मूर्ति  है । मूर्ति  एक  देवता  की  है , उसके  अंदर  किसी संत  ने , किसी  महात्मा  ने  अपना  चैतन्य  डाला  हुआ  है । अपना वाइब्रेशन  डाला  हुआ  है । तो  उस  वाइब्रेशन्स  के  कारण  उस  मूर्ति  के  अंदर  चैतन्य  है , वाइब्रेशन्स  है । याने  रूप  एक  का  है  औऱ  स्वरूप  एक  का  है ! स्वरूप  उस  संत  का , स्वरूप  उस  महात्मा  का औऱ  रूप  उस  मूर्ति  का !  ...उस  देवता  का ! उसके  सामने  जाने  के  बाद  में  आपको  अच्छा  लगा । उसके  चैतन्य  कें  सानिध्य  में  उस  मूर्ति  के  रूप  के   दर्शन  करके  हम  भी  अंतर्मुखी  हो  गए ! अंतर्मुखी  हुए  इसलिए  हम  हमारे  ही  आत्मा  के  पास  पहुँचे । आत्मा  के  करीब  पहुचे  इसलिए  अछा  लगा ! ...

--परमपूज्य स्वामीजी ,
चैतन्य महोत्सव , २०१६

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