सामूहिकता-हाइवे.....कब तक
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प्रश्न 27 : आप समझाते हैं कि हमेशा हाइवे पे नहीं रहा जा सकता | एक पतली गली से जाना पडता है | तो ये बात सरल तरीके से समझा सकते हैं ?
स्वामीजी : नहीं, एक्च्युअली क्या है, मालूम है क्या कि प्रत्येक को ...इसलिए मैं बता रहा हूँ न...अपने आत्मा को गुरू बनाओ | उससे जितने (जितनी) निकटता करोगे तो बाद में, आखिर में वो ही आपके कार्य आएगा न, साथ मे आएगा | तो झडप से प्रोग्रेस करने के लिए, जल्दी प्रोग्रेस करने के लिए हम सामूहिकता का सहारा लेते है | लेकिन सामूहिकता हमारे साथ में सदैव रहेगी क्या ? नहीं रहेगी | तो बाद में हमको ही हमारे जीवन के अंतिम पड़ाव में... सब लोग, ये सब पूरा सेंटर अपने साथ रहेगा क्या ? नहीं रहेगा | अपुन अपने रहेंगे | तब उस समय फिर आपके साथ कौन रहेगा ? आपकी आत्मा रहेगी | तो वो आत्मा के साथ अपना रिलेशन्स (रिश्ता) अच्छा करो ना ! उसकी स्थिती अच्छी बनाओ, उसको मजबूत बनाओ | तो उसका साथ आपके जीवनभर, अंतिम साँस तक रहेगा |
अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस, भावनगर
मधुचैतन्य : मार्च,अप्रैल-2016
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प्रश्न 28 : सामूहिकता के साथ कब तक रहना यह कैसे मालूम पड़ेगा ?
स्वामीजी : नहीं, नहीं | देखो, अब जैसे हाईवे है | यहाँ से मुंबई पहुँचने का है | तो उतने देर तक हम हाईवे का इस्तेमाल करते हैं | बाद में मुंबई पहुँचके अपने को अपनी गली में जाने का है तब हाईवे को छोड़ते ही है ना ! तो उसी प्रकार से गुरु का है और सामूहिकता का है | एक झड़प से प्रोग्रेस तक का वो है | उसके बाद में आगे का रास्ता अपने को ही अपना तय करना पड़ता है |
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मधुचैतन्य : मार्च,अप्रैल-2016
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प्रश्न 29 : तो क्या सामूहिकता/हाइवे को छोड देना है ?
स्वामीजी : छोड़ देना नहीं...जैसे फल है कि नहीं ? पूर्ण पक जाने के बाद वो झाड़ को छोड़ ही देता है | उसी के... ऑटोमेटिकली ये सब छूट जाता है | और उसके बाद में तुम तुम्हारा खुद का आईडेंटिटी (पहचान) निर्माण कर लेते हो | समर्पण का उद्देश्य क्या है, मालूम है ? तुम तुम्हारे गुरु बन जाओ | देखो, ये गुरू भी एक निमित्य (निमीत्त) है | माने गुरु के बिना आत्मसाक्षात्कार नहीं मिल सकता लेकिन गुरु...क्या बोलते हैं न, गुरु आत्मसाक्षात्कार नहीं देता | लेकिन गुरु के बिना आत्मसाक्षात्कार नहीं मिल सकता | जैसे मैंने बताया ना - एक दीपक से दूसरा दीपक जलता है लेकिन वो दीपक उसको जलाने जाता है क्या ? नहीं ! वो तो अपने जगह जलते रहता है | सिर्फ बुझा हुआ दीपक आके उसको स्पर्श करता है...वो जल उठता है | तो उसके अंदर, वो जलते हुए दीपक ने उसको जलाई क्या ? नहीं जलाया | सिर्फ उसके सानिध्य में वो जल उठा | उसी प्रकार से, गुरू अपने ही मस्ती में रहता है | वो अपनी ही स्थिति में रहता है | सिर्फ हम उसके सानिध्य में है... हम उसके पास जाकरके, उसकी आभा को अनुभव करते हैं , उसकी प्रभा को ग्रहण करते हैं | बस, बाकी कुछ नहीं | वो लेकरके अपने को अपना रास्ता आगे चलने का है ना ! और दूसरा क्या रहता है, मैंने बताया कि जैसे इलेक्ट्रिशन (विद्युद्वेता) है | उसको तो बहुत सारे घरों मे कनेक्शन करने का है | तो गुरु कोई अपना एक अकेले का है क्या ? नहीं ! उसको लाखों लोगों तक पहुँचने का है | तो उसको हमको फ्री (आजाद) छोड़ना चाहिए | उससे उतना ही इलेक्ट्रिक (बिजली/ विद्युत) का कनेक्शन का करवा लो, बाद में अपनी लाईट जलाते बैठो | वो दूसरे बंगलों (घर) में लाईट जलाने जाएगा | ऐसा |
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मधुचैतन्य : मार्च,अप्रैल-2016
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