में सदैव हमको शरीर के स्तर पर

"में" सदैव हमको शरीर के स्तर पर ही रखता है। "में" के साथ "संदेशवाहक" का दर्शन भी संभव नहीं है। जिस व्यक्ति मे "मैं" का भाव होता है, वह अपने आप को ही दुनिया का सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति समझता है, अपने से कोई व्यक्ति श्रेष्ठ हो सकता है, यह वह मान ही नहीं सकता हे। "संदेशवाहक" मेरे से अधिक आध्यात्मिक प्रगति किया हुआ मनुष्य हे, यह वह मान ही नहीं सकता हे। इसीलिए "में" के साथ कभी संदेशवाहक के पास जाया ही नहीं जा सकता है। एक तो आध्यात्मिक स्थिति कोई ऐसी वस्तु भी नहीं है, या संपत्ति भी नहीं है जो देखी जा सकती हो। आध्यात्मिक स्थिति तो एक सर्वोच्च भाव की दशा है, और भाव की दशा तो एक भावपूर्ण हृदयवाला व्यक्ति ही जान सकता है। जिस व्यक्ति मे "में" का अहंकार विद्यमान है, उसमे "भाव" तो निर्माण हो ही नहीं सकता है। अहंकार का संबंध शरीर के साथ होता है। और भाव का संबंध आत्मा के साथ होता है। एक उच्च स्थिति के भाव के "आभामंडल" में एक अहंकार भरा व्यक्ति प्रवेश ही नहीं कर पायेगा।

संदेश वाहक
२१/०२/२०१९ (गुरुवार)

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