गुरुकृपा
गुरुकृपा में खूब आनंद प्राप्त किया , खूब अच्छी-अच्छी आनुभूतियाँ हुई। अब मुझे यह सब आपको बाँटकर ही आनंद मिल पाता है। अब यह आत्मज्ञान मुझे रखकर आनंद नहीं आता , बाँटकर ही आता है। इसलिए आपको कल्पना नहीं है कि मैं आपके बिच कितना खुश और प्रसन्न हूँ। आप अच्छे-से मेरी बातें सुन रहे हैं , नियमित आ रहे हैं इससे मुझे बहुत प्रसन्नता होती है। और आत्मज्ञान सही आत्माओं तक पहुँच रहा है और वह पहुँचाने का माध्यम बनने का अवसर मुझे मिल रहा है , यह बात मेरे आत्मा को एक समाधान देती है। अब आप इस चक्र का नियम समझ लो - आपको जो लगता है कि आपके जीवन में यह कमी है तो आप वही बात लोगों को बाँटना प्रारंभ करो।
भाग - ६ -२१६
भाग - ६ -२१६
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