ध्यान करना यानी क्या प्रकृति से जुड़ना

मैने  कितने लोगो को ध्यान सिखाया इसका कोई हिसाब ही नहीं । सैकड़ो गाँव मे गया हू , लेकिन किसी भी  गांव  मे  बाद मे वो लोग ध्यान  करते है  या  नहीं,  यह  देखने  बाद मे कभी नहीं  गया । जिस प्रकार से एक किसान जमीन पर  बीज डालते जाता है  पर  पिछे मुड़कर देखता भी नहीं है कि  उसने  बोये  हुए  बिज  उगे है या नहीं । ऐसी ही मेरी स्थिती थी । मुझे  लगता था मुझे गुरूदेव ने कायॅ बीज बोने का ही दिया है ,  मैने केवल उतना ही कायॅ करना चाहिए । जीन बिजो पर गुरुदेव की कृपा होगी और वे  चाहेंगे की वे बीज उगे तो वे उगेगे  और जो वे नहीं चाहेंगे, वे नहीं उगेंगे ।  मै तो केवल माध्यम हू , मै  केवल निमित्त हूँ बीज बोने का । जो जमीन बीज पाने के योग्य हो गयी होगी,  उसी  जमीन पर  बीज गिरेगा और  जहां उगना होगा वहाॅ बीज उगेगा। बीज को अंकुरित करने वाली शक्ती अपना  कायॅ करेगी । यह  व्यावहारिक नही है, लेकिन मैने केवल यही किया है और यह मै  प्रामाणिकता के  साथ  कबूल भी करता हूं । मैने उन्हे ध्यान  सिखाया  यानी  क्या?  मैने उन्हे  प्रकृति से  जुड़ना सिखाया । ध्यान  करना यानी  क्या प्रकृति से जुड़ना ही है ।

Hksy  part  6 pg 350

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