चित्त मोक्ष का द्वार है
11) वास्तव में मोक्ष ध्यान की उच्च स्थिति है, उच्च कक्षा है | और यह स्थिति पाने के लिए आपके पास जीवंत शरीर की आवश्यकता होती है |
12) याने बिना शरीर के मोक्ष की स्थिति प्राप्त नहीं की जा सकती है | उस स्थिति को पाने के लिए शरीर का होना आवश्यक है |
13) मोक्ष ध्यान की उच्च अवस्था है | यह जीते-जी ही प्राप्त करनी होती है | मुक्त होती है, वह है आत्मा | वह कभी मरती नहीं है | और जो मरता है, वह है शरीर | यानि शरीर के मरने के पूर्व आत्मा से मुक्त हो जाना ही मोक्ष है और मुक्त, शरीर होते हुए होना चाहिए |
14) सरल शब्दों में कहें तो जीते-जी मर जाना ही मोक्ष है |
15) याने आप जीवित है और सब बातों से विमुक्त हो गए हो कहीं भी अटके नहीं हो, ऐसी स्थिति जैसी एक पवित्र, शुद्ध आत्मा की हो |
16) मनुष्य की सबसे बड़ी लालसा - और जीवित रहने की है | बिल्कुल कब्र में ही पैर लटक रहे हो, मनुष्य और जीना चाहता है |
17) और यह और जीवित रहने की अतृप्त इच्छा ही उसके दूसरा जन्म लेने का कारण बनती है |
18) शरीर तो साथ नहीं दे रहा है, लेकिन फिर जीवित रहने की लालसा अभी बाकी है, तो उस लालसा को पूर्ण करने के लिए आत्मा को फिर दूसरा जन्म लेना पड़ता है |
19) लेकिन अगर जीवनकाल में ही वह स्थिति प्राप्त हो जाए कि और जीने की भी लालसा जीवन में न रही हो, तो कोई कारण ही नहीं रह जाता कि मनुष्य दूसरा जन्म ले |
20) यह संपूर्ण तृप्त स्थिति ही मोक्ष की स्थिति है |
क्रमशः.......
क्रमशः.......
अध्यात्मिक सत्य
25/03/2007.....पन्ना क्र. - 106
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