आहार
जब हम हल्का , सुपाच्य भोजन करते हैं , तो लिवर पर अधिक दबाव नहीं आता है। क्योंकि ध्यान का संबंध चित्त से है , चित्त का संबंध लिवर से है और लिवर का संबंध आपके आहार से है। यानि आहार का ध्यान से सीधा संबंध है। जंगल में ऋषी-मुनी, इसलिए कंद-मूल फल खाकर गुजारा करते हैं , और वे मांसाहार भी नहीं करते हैं।
हल्का आहार लेने पर मैंने अनुभव किया - पहले मेरी काफी चेतनाशक्ति गलत आहार को पचाने में ही खर्च हो जाती थी। उस चेतना शक्ति की बचत हो गई और वही चेतना-शक्ति ध्यान में अच्छी स्थिति बनाने में परिवर्तित हो गई। और यही लाभ सभी साधक भी लें , इसी शुद्ध इच्छा से यह अनुभव आपको बता रहा हूँ। आप भी तली हुई चिजों और मीठी वस्तुओं से परहेज करे। बीच में एखाद दिन आपने खा भी ली , तो उसका कुछ भी असर नहीं पडता , रोज के आहार में नहीं होना चाहिए। इसी तरह चाय चलेगी , कॉफी नहीं।
भूक का ७५प्रतिशत ही भोजन करना चाहिए।
भूक का ७५प्रतिशत ही भोजन करना चाहिए।
इस प्रकार आपका चित्त भी खाने से अलग होगा और चित्त सशक्त बनेगा तो ध्यान अच्छा लगेगा। अपनी आध्यात्मिक उन्नति में आहार का बडा महत्वपूर्ण स्थान है।
*मधुचैतन्य अक्टूबर २००५*
Comments
Post a Comment