समर्पण ध्यान का मिशन

६१.  यह एक शरीर का महामहत्वपूर्ण संस्कार है। इसलिए एक ही माँ-बाप को दो अलग-अलग प्रकार के लडके होते हैं। एक बहुत अच्छा होता है, एक बहुत खराब। दो लडकों में जमीन-आसमान का अंतर देखा गया है। दोनों के स्वभाव अलग-अलग होते हैं क्योंकि आत्माओं का स्तर अलग-आलग होता है।

६२.  हम सदैव अच्छे फलों की अभिलाषा रखते हैं, पर यह वास्तव में  अच्छे वृक्षों के बिना कभी संभव ही नहीं है। इसलिए अच्छे वृक्ष लगाईए, तो अच्छे फल स्वयं ही आएँगे। युवा साधकों के रूप में हमें हमारे जीवनकाल में अच्छे वृक्ष लगाना है तो इन अच्छे वृक्षों को भविष्य में अच्छे फल आएँगे ही। रही बात फल खाने की, तो हम फल खा न सके, हम माध्यम तो बन सकते हैं दूसरों को अच्छा फल खिलाने के। समाधान फल खाने में नहीं, फल खिलाने में है। और हम हमारे जीवनकाल में जो फल खा रहे हैं, वे भी तो किसी ने लगाए होंगे ही, जो वह अपने जीवनकाल में नहीं खा सका।

६३.  अगर बह्मांड मे बदलाव चाहते हो तो उस बदलाव को पहले एक पिंड में लाना होगा। एक पिंड भी निर्माण हो गया तो उससे हजारों लोगों तक बदलाव आएगा। पर बदलाव की शुरुआत स्वयं से करना सबसे आसान है क्योंकि स्वयं हम अपने अधिक करीब होते हैं।

६४.  पवित्र आत्माएँ ईश्वरीय देन हैं। ये बनाई नहीं जाती हैं। पवित्र स्थान निर्माण होने पर ये स्वयं ही प्रगट हो जाती हैं।

६५.  युवा पवित्र आत्माएँ आमंत्रित करने के अच्छे माध्यम हैं क्योंकि उनका चित्त पवित्र होता है। बुरे अनुभवों की,  बुरी घटनाओं की धूल उनके चित्त पर नहीं होती है। एक साफ चित्तवाले लोग होते हैं। उम्र बढने के साथ बुरी स्मृतियाँ इकठ्ठा होना शुरू हो जाती हैं। फिर उन्हें साफ करना कठिन होता हैं।

६६.  विश्व में कभी बदलाव आएगा तो वह युवावर्ग के द्वारा ही आएगा। विश्व में जब शांति का परिवर्तन आएगा, तो युवावर्ग के द्वारा ही आएगा।

६७.  बडो के पास भुलाने के लिए जीवन के कई कटु अनुभव होते हैं जिसके लिए काफी प्रयास करने पडते हैं। और युवा के पास भुलाने के लिए कुछ होता ही नहीं है।

६८.  युवावर्ग को बस अपने चित्त को संभालना चाहिए कि चित्त में कोई बुरे अनुभव न आ जाएँ। बुरे अनुभवों को किनारे करके आगे बढना होगा, न कि बुरे अनुभवों को बार-बार याद करके चित्त को दूषित करना है।

६९.  अच्छा संगत में, अच्छे सान्निध्य में ही चित्त को शुद्ध व पवित्र रखा जा सकता है। पवित्र सान्निध्य में बुरे अनुभव आएँगे ही नहीं। और कभी आए तो भी वे आपके चित्त को दूषित नहीं कर पाएँगे।

७०.  जीवनरूपी हंडे में जहर भरो ही मत क्योंकि भरने के बाद निकालना बडा कठिन होता है। हंडे में जहर भरने से रोकना आसान है। इसलिए ध्यान रहे,  जीवन में कभी किसी के द्वारा जहर प्रवेश न करें, न जहरभरे व्यक्ति पर आपका चित्त हो। क्योंकि चित्त जहाँ रखोगे, वह वहाँ से ग्रहण करेगा। चित्त कहाँ रखना है, यह आपके हाथ में होता है। जो हाथ मैं है, वह करो। वह आसान है।

आध्यात्मिक सत्य, पृष्ठ. ९१-९२.

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