सर्वस्व समर्पण

१ ] भक्तयथारथ  जे  कोई  होय  आत्मा  सहित  समर्पे सोय ।
२ ] व्रेह  वैराग्य  जेनु  मन  तपे  ,द्वंद  माहे  ते  नर  हरी  जपे ,
३ ] सदगुरु  चरने  आपोर्पु  अर्पे ,परब्रंम्ह  रहे  ने  पोते  ते  खपे.
४ ] गुरु  था  तारों  तुं  ज  , जुजवो  को  नथी  भजवा  बहार  बुद्धी  तूं  टाळ , वाळ  अंदर  पेशवा.
५ ] आदरवो  आत्म  अभ्यास  , अखा  सांभालो  जे  आपनी  पास.

संत श्री अखा भगत...
म..चैतन्य..
सितंबर  [ २०१० ]

Comments

Popular posts from this blog

Subtle Body (Sukshma Sharir) of Sadguru Shree Shivkrupanand Swami

सहस्त्रार पर कुण्डलिनी