आभामंडल

13) आत्मा अगर सशक्त हुई तो वह शरीर को अपराध करने से रोक सकती हैं | और  समर्पण ध्यान आपकी आत्मा को ही सशक्त करता है | और इसीलिए आपके हाथ से अपराध नहीं हो पाता है | आत्मा का सशक्त होना अत्यंत आवश्यक है | बुद्धि के विकास के साथ-साथ आत्मीयता कम हो रही है | यह बात अच्छी प्रतीत नहीं होती | यह समाज में असंतुलन पैदा करेगी |

14) आज के सायन्स के युग में बुद्धि का तेजी के साथ विकास हो रहा है | आज के सायन्स में के युग में रोज नए-नए आविष्कार हो रहे हैं | पहले शरीर की शक्ति का युग था, तो आज बुद्धि की शक्ति का युग है | ना वह युग रहा, न यह युग रहेगा |
सायन्स ने नए-नए आविष्कार किए हैं | यह बुद्धि से किए गए, आत्मीयता का अभाव है | अगर ये आविष्कार गलत हाथों में पड़ गए तो मानव-जाति के लिए घातक सिद्ध हो सकते हैं | बनानेवाले सोच भी नहीं सकते, उनके द्वारा बनाया गया उपकरण विनाशकारी भी सिद्ध हो सकता है | आज का इंटरनेट इसका ताजा उदाहरण है | आज इतने अच्छे साधन का गलत हाथों में पड़ जाने के कारण गलत इस्तेमाल हो रहा है | गलत हाथों में न पड़े, इसकी कोई व्यवस्था नहीं है | यह व्यवस्था भी साथ-साथ करनी आवश्यक है |

15) इसके लिए आवश्यक है - गलत हाथ ही न रहें | गलत व्यक्ति नहीं होंगे तो गलत हाथ नहीं होंगे और फिर गलत हाथों में पड़ने का खतरा भी नहीं होगा |

16) इसलिए आवश्यक है, बुद्धि के विकास के साथ-साथ आत्मीय विकास भी होना आवश्यक है | आत्मिक विकास का महत्व आज जितना है, उतना पहले कभी आवश्यक नहीं था क्योंकि बुद्धि का विकास इतना नहीं था | अन्यथा यह बुद्धि का एकतरफा विकास ही मानव-नाश का कारण सिद्ध होगा | आज ही संभलने की आवश्यकता है, कल तो देर हो जाएगी |
क्रमश: ....

अध्यात्मिक सत्य
18/03/2007, रविवार... पन्ना क्र. 95✍

Comments

Popular posts from this blog

Subtle Body (Sukshma Sharir) of Sadguru Shree Shivkrupanand Swami

सहस्त्रार पर कुण्डलिनी