नींद और ध्यान में क्या अंतर है ?
साधक : नींद और ध्यान में क्या अंतर है ?
स्वामी जी : जब शरीर थका हुआ हो, उसको पूरा आराम नहीं मिला हो, तब ध्यान में नींद आती है | यानी कि शरीर की क्षमता से ज्यादा उससे काम करा जाए, तो ध्यान के दरम्यान जरूर नींद आएगी | जैसे कई लोग ड्राईवर से डबल ड्यूटी (दुहरा काम) कराते हैं और उसे पूरा आराम नहीं देते हैं, तब वह गाड़ी चलाते-चलाते थक जाता है और कभी अपघात (दुर्घटना) भी कर बैठता है |
हमारे पास एक शरीर है और एक आत्मा है | आत्मा कहता है - ध्यान कर, पर शरीर सो जाता है क्योंकि शरीर को पूरा आराम नहीं मिला होता है | इसलिए आत्मा का शरीर पर नियंत्रण नहीं रहता है | उसे ऐसे भी समझाया जा सकता है की जैसे आत्मा छोटा कुत्ता है और शरीर बड़ा कुत्ता है | अगर एक कुत्ता अपनी गली में अकेला हो और बाहर दूसरा, ताकतवर कुत्ता आए तो वह भौंककर विरोध करता है, पर उसे भगा नहीं सकता | पर अगर उसके साथ ज्यादा कुत्तों की सामूहिकता हो तो वह अपने से भी ताकतवर कुत्ते पर हमला कर सकता है | इस तरह शरीर का नियंत्रण आत्मा पर पूरा रहता है | शिविर के पहले दिन आप साधक को शिविर में ले आते हो, तब वह आपके कहने से आता है, पर दूसरे दिन उसे उसकी आत्मा शिविर में खींच कर ले आती है क्योंकि उसे (आत्मा को) अनेक आत्माओं की सामूहिकता मिलने से वह शरीर जैसे बड़े कुत्ते पर हावी हो जाती है और शरीर आत्मा के नियंत्रण में आ जाता है |
आप इन दिनों में अपने शरीर को पूरा आराम दो और ध्यान में चित्त से शामिल हो जाओ, अन्यथा "न राम मिले, न माया" ऐसा होगा | ध्यान तो चित्त से होता है, शरीर से थोड़े ही होता है | सामूहिकता में ध्यान करने से चित्त पर नियंत्रण आएगा | अगर तैरना सीखना हो तो पानी की आवश्यकता होती है कि नहीं ? क्या हवा में हाथ-पैर हिलाने से तैरना सीखा जा सकता है ? तो ध्यान सीखने के लिए सामूहिकता की आवश्यकता जरूरी है | सामूहिकता भी जिनका चित्त पर नियंत्रण हो, ऐसे साधकों की होनी चाहिए
हमारे पास एक शरीर है और एक आत्मा है | आत्मा कहता है - ध्यान कर, पर शरीर सो जाता है क्योंकि शरीर को पूरा आराम नहीं मिला होता है | इसलिए आत्मा का शरीर पर नियंत्रण नहीं रहता है | उसे ऐसे भी समझाया जा सकता है की जैसे आत्मा छोटा कुत्ता है और शरीर बड़ा कुत्ता है | अगर एक कुत्ता अपनी गली में अकेला हो और बाहर दूसरा, ताकतवर कुत्ता आए तो वह भौंककर विरोध करता है, पर उसे भगा नहीं सकता | पर अगर उसके साथ ज्यादा कुत्तों की सामूहिकता हो तो वह अपने से भी ताकतवर कुत्ते पर हमला कर सकता है | इस तरह शरीर का नियंत्रण आत्मा पर पूरा रहता है | शिविर के पहले दिन आप साधक को शिविर में ले आते हो, तब वह आपके कहने से आता है, पर दूसरे दिन उसे उसकी आत्मा शिविर में खींच कर ले आती है क्योंकि उसे (आत्मा को) अनेक आत्माओं की सामूहिकता मिलने से वह शरीर जैसे बड़े कुत्ते पर हावी हो जाती है और शरीर आत्मा के नियंत्रण में आ जाता है |
आप इन दिनों में अपने शरीर को पूरा आराम दो और ध्यान में चित्त से शामिल हो जाओ, अन्यथा "न राम मिले, न माया" ऐसा होगा | ध्यान तो चित्त से होता है, शरीर से थोड़े ही होता है | सामूहिकता में ध्यान करने से चित्त पर नियंत्रण आएगा | अगर तैरना सीखना हो तो पानी की आवश्यकता होती है कि नहीं ? क्या हवा में हाथ-पैर हिलाने से तैरना सीखा जा सकता है ? तो ध्यान सीखने के लिए सामूहिकता की आवश्यकता जरूरी है | सामूहिकता भी जिनका चित्त पर नियंत्रण हो, ऐसे साधकों की होनी चाहिए
मधुचैतन्य - जनवरी,फरवरी,मार्च 2008
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