आत्मसूख

सद्गुरु को मिलना , उससे आत्मसाक्षात्कार पाना , बाद में अंतर्मुखी होना , अपने -आपको ही गुरु बनाना और अपने ही भीतर परमात्मा को पाना , यह क्रमबद्ध प्रगति की दिशाएँ हैं , लेकिन यह एक ही जन्म में हो यह संभव नहीं हैं । इसलिए , कई साधक आत्मसाक्षात्कार पाकर भी भटकते रहते हैं । मूझे उसका कोई आश्चर्य नहीँ होता हैं । क्योंकि एक ही जन्म में सब कुछ हों जाए ऐसा नहीँ होता हैं । ....*

*✍...पूज्य स्वामीजी*
*[ आत्मेश्वर ]*

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