Q & A

प्रश्न 53 :- क्या मोक्ष की इच्छा रखना आसक्ति है ?

स्वामीजी :- हाँ, मोक्ष की इच्छा रखना भी आसक्ति है | वास्तव में मोक्ष की आपकी कल्पना आपने क्या रखी है, मालूम नहीं, कि मोक्ष यानि कोई वस्तु है, उसकी आसक्ति है या आसक्ति नहीं है, ऐसा आप विचार करते हैं |
     एक्चुअली (वास्तव में) मोक्ष ध्यान की एक उच्च अवस्था है | उस अवस्था की आसक्ति कैसे की जा सकती है | अवस्था तो स्वयं-ब-स्वयं (खुद-ब-खुद) प्राप्त होती है गुरु-सानिध्य में | उसकी आसक्ति नहीं की जा सकती | और मोक्ष एक स्थिति है | ध्यान की एक उच्च अवस्था है, जिसे मोक्ष कहते हैं | और वह हमें  सशरीर, फिर से मेरे शब्दों पर ध्यान दो, वह आपको सशरीर प्राप्त करनी होगी, इस शरीर के साथ प्राप्त करनी होगी | शरीर छोड़ने के बाद मोक्ष-प्राप्ति कभी नहीं हो सकती | मोक्ष प्राप्त करने के लिए आपको ध्यान की एक उच्च अवस्था प्राप्त करनी होगी | और उच्च अवस्था प्राप्त करने के लिए आपको शरीर की आवश्यकता है | इसलिए शरीर को दोष देना छोड़ दो | मैंने कल ही समझाया था - दोष मत दो, उसे धन्यवाद दो | इसके बिना तो हम मोक्ष तक पहुँच ही नहीं सकते | मर सकते हैं | मोक्ष तक नहीं पहुँच सकते | मोक्ष प्राप्त करना और मरना, एकदम अलग-अलग है | लोग समझते हैं - मरना यानि मोक्ष प्राप्त करना ऐसा नहीं है | मरना अलग है, मोक्ष प्राप्त करना अलग है | और मोक्ष प्राप्त किया हुआ व्यक्ति मरता नहीं है | इसका प्रत्यक्ष प्रमाण मैं आपके सामने बैठा हूँ | मोक्ष पचीस साल पहले प्राप्त किया था, अभी तक जीवित हूँ | सिर्फ वो प्राप्त करके मैं बैठा नहीं रहा | इसी इच्छा से समाज में आया हूँ - जो मैंने प्राप्त किया है, जो स्थिति मैंने प्राप्त की है,वह स्थिति प्रत्येक साधक प्राप्त करें | इसी इच्छा से आया हूँ | मेरे सारे प्रयत्न सिर्फ इसी के लिए हैं | तो दिमाग से गलतफहमी निकाल दो - मोक्ष यानि मरना | हाँ, अगर जीते-जी मोक्ष की प्राप्ति हो जाए तो आपका भी एक आभामंडल निर्मित हो जाएगा, आपका भी एक सूक्ष्म शरीर निर्मित हो जाएगा | लेकिन उसके लिए आपको आपके जीवन काल में मोक्ष की प्राप्ति करनी होगी | तो मोक्ष यानी ध्यान की एक उच्च अवस्था | सिंपल (सरल) - जीते-जी मर जाना - मोक्ष | जीते-जी मर जाना मोक्ष है | जिंदा है, लेकिन मरे हुए हैं |किसी में भी अटैचमेंट (लगाव) नहीं है, डिटैचमेंट (अलगाव) नहीं है, और जीने की इच्छा भी नहीं है | यह और जीने की इच्छा हमारे मोक्ष में बहुत बड़ी बाधक है | क्या होता है, मालूम है ? इधर कब्र में पैर लटके हुए हैं, पूरा शरीर साथ नहीं दे रहा है, लेकिन और जीना है, और जीने की इच्छा है | तो क्या होता है, शरीर तो साथ नहीं देता है, फिर उस इच्छा की तृप्ति कहाँ होगी ? दूसरा जन्म लेकर होगी, दूसरा जन्म लेंगे | लेकिन दूसरा जन्म लेने की भी इच्छा नहीं है, जीने की इच्छा नहीं है, जो मरा ही हुआ है, वह क्या मरेगा और ? हम कब मरते हैं ? जब हम मरते हैं | मजबूरी में मरते हैं क्योंकि मर ही गए | अब जब मर गए तो मरना ही पड़ेगा न ! लेकिन उस मरने के पहले अगर मर जाओ, सब में से डिटैच हो जाओ, सब में |

मधुचैतन्य :- जुलाई,अगस्त,सितंबर-2007
चैतन्यधारा

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