आभामंडल
एक मनुष्य का शरीर होता है जिस शरीर को छूकर देखा जा सकता है । इस शरीर को स्थूल शरीर कहते है । और इस शरीर के जो विचार है , उन विचारों का प्रभाव उस शरीर के आसपास पड़ता रहता है और इस प्रभाव को ही आभामंडल कहते है । यह अलग -अलग विचारों के अनुसार अलग -अलग प्रकार के रंग का हो सकता है और इस आभामंडल के रंगों को देखकर ही मनुष्य के विचारों को जाना जा सकता है की मनुष्य मूलतः कैसा है ?क्योंकि मनुष्य भीतर से जैसा होगा , वैसे ही उसके विचार होंगे , और जैसे विचार होंगे , वैसे ही इस आभामंडल के रंग होंगे । मनुष्य की सांस लेने की कारण यह स्पंदित होते रहता है । कभी जब सांस ली , तो छोटा हो गया और सांस छोड़ी , तो बड़ा हो गया । उसका आकार ऐसे कम या जादा होते रहता है यह प्रत्येक मनुष्य का होता ही है । और अंधेरे में मनुष्य की छाया मनुष्य का साथ छोड़ दे , पर यह अंधेरे में भी मनुष्य के साथ बना हुआ रहता है । इस आभामंडल के रंगों को देखकर किसी भी मनुष्य को जाना जा सकता है । . . .
परमपूज्य स्वामीजी
ही.का.स.योग.२/२५४/५५
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