सामूहिकता में नियमित ध्यान

अपने घर में *एक लाख दिन ध्यान करना और एक लाख लोगों के साथ एक दिन ध्यान करना बराबर होता है।* सामूहिक ध्यान में जहाँ एक और चित्त की शुद्धि होती है वहीँ दूसरी और आत्मा की भी प्रगति होती है क्योंकि आत्मा को भी प्रगतिशील आत्माओं की सामूहिकता मिलती है।"
*"साधकों को प्रतिदिन सामूहिक ध्यानकेंद्र में ध्यान करना चाहिये* क्योंकि उस वैचारिक प्रदुषण वाले मनुष्य समाज में *आत्माओं को सशक्त करने का एकमात्र उपाय सामूहिकता ही जान पड़ता है।* इसलिए समर्पण ध्यान का कार्य केंद्रों के माध्यम से होना चाहिए।"
"सुरक्षा की शक्ति सदैव परमात्मा की होती है और परमात्मा तो सदा आत्माओं की सामूहिकता में ही रहता है। और अगर हम आत्माओं की सामूहिकता से जुड़ते हैं तो परमात्मा का सुरक्षा कवच हमें अनायास ही मिल जाता है। लेकिन आत्माओं की सामूहिकता में हमें आत्मा बनकर ही जाना होगा।"

*हिमालय का समर्पण योग - भाग 4 पृष्ठ संख्या २८१-८४*

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