जीवंत गुरु
प्रकृति का नियम .है - बाहरी तत्व समान ही होता है। जिस प्रकार , नारियल को बाहर से देखो तो सब एक से ही मालूम होंगे , समान मालूम होंगे ; ठीक उसी प्रकार , गुरु का शरीर भी सामान्य मनुष्य जैसा ही होता है। पर गुरु का शरीर आत्मतत्व के प्रभाव में होता है औऱ इसीलिए उसमें एक प्रकार का जबरदस्त आकर्षण होता है। यह आकर्षण भी दिखता नहीं है , अनुभव होता है । इसीलिए जीवंत गुरु को पहचानना अत्यंत कठिन होता है औऱ जीवंत गुरु अनुभूति से ही पहचाना जा सकता है ॥
✍..बाबा स्वामी
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