हि.स.यो-४ पुष्ट-६२

सुमा को बड़ा आश्चर्य हुआ कि मैंने ज्ञान कि कोई पुस्तक नहीं पड़ी है उसने पूछा भी, "यह कैसे संभव है! आपको कभी पुस्तकें पढ़ने की इच्छा भी नहीं हुई? आप तो पढे-लखे हैं,
पढ़ सकते हैं। सामान्यतःमनुष्य को जिस विषय में रुचि हो,वह उस विषय का इतिहास जानने का प्रयत्न करता है। आपने विषय के बारे में पहले किसने और क्या अनुभव लिखें हैं वह
जानने का प्रयास करता है। इस विषय पर किसी का मार्गदर्शन चाहता है। पुस्तकों जैसा आसान गुरु उसे उपलब्ध होता है तो समाज में मनुष्य प्रायः पुस्तकरूपी गुरु की शरण में जाता है। कई लोग जिन्हें पुस्तकें पढ़नी नहीं आती, वे भी दूसरे से पुस्तकें पढ़वाते और सुनते हैं कि उनके प्रिय विषय के बारे में पुस्तकों में क्या लिखा है। आप तो स्वयम पढ़ सकते हैं फिर भी कभी कोई ग्रंथ पढ़ने कि इच्छा नहीं हुई?" "अरे, सुमा, तेरा कहना बिल्कुल ठीक है सामान्यतः मनुष्य ऐसा ही करता है," मैं ने उसे बीच में टोकते हुए कहा। बाद में मैं ने बड़ी गंभीरता से कहना प्रारंभ किया, "सुमा, मेरे बचपन में इस विषय के प्रति जिन्होंने भी मेरी जिज्ञासा को जगाया, उन्होंने भी जीवन में पुस्तकें पढ़ी नहीं थीं। उन्होंने भी अपने जीवन में आए हुए अनुभवों और जीवन के अंत में प्राप्त हुए निष्कर्षों के आधार पर कहा था-परमात्मा सर्वत्र है, परमात्मा कल भी था, आज भी है और कल भी रहेगा।
हि.स.यो-४ 
 पुष्ट-६२

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