संतुलन की स्थिति में मृत्यु आना ही ' मोक्ष है
' चित ' की स्थिति एक तराजू जैसी होती है | वह स्वयं कुछ नहीं करता पर जो
होता है उसका परिणाम वह प्रदान करता है | चित के तराजू में एक ओर जो वजन के
मापदण्ड होता हैं वह छोर आत्मा का होता है | आप जितना भीतर चित को रखोगे,
वह बाट वजन के बढ़ते जाएँगे | और दूसरी ओर शरीर होता है | आप आपके शरीर की
ओर, शरीर की इच्छाओं की ओर, शरीर की आवश्यकताओं की ओर, शरीर के अहंकार की
ओर जितना अधिक ध्यान दोगे, उतना ही आपके चितरूपी तराजू का दूसरा पाला बाहर
की ओर होना प्रारंभ होगा | और फिर ध्यान कर अपने चित को भीतर की ओर मोड़ना
होगा | और यही प्रक्रिया मनुष्य के जन्म से मृत्यु तक चलते ही रहती है | और
उसी संतुलन की स्थिति बनाए रखना और उसी संतुलन की स्थिति में मृत्यु आना
ही ' *मोक्ष* ' है |
हि.स.यो-५ पृ-८०
हि.स.यो-५ पृ-८०
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