वास्तव में , जिवंत गुरू निमित्य है
" वास्तव में , जिवंत गुरू निमित्य है । वे आत्मजाग्रुती
कराते नही बल्कि उनके सानिध्य में आत्मजाग्रुती होती है ।
उनके बिना आत्मजाग्रुती संभव नही है । यह ठीक वैसा ही
है , जैसे हमारे बैंक के लॉकर में हमारे बहुमूल्य जेवर
रखे गए है और जब तक बॅंक म्यानेजर अपनी चाबी लॉकर में
नही लगाता , हम लॉकर खोल कर जेवर नही ले सकते है ।
जेवर पर अधिकार हमारा है लेकिन
फिर भी बैंक म्यानेजर की सहमति के बिना जेवर प्राप्त
करना संभव नही है । बस "अध्यात्म में भी ऐसा ही है ।"
प.पु.स्वामीजी
[ समग्रयोग ]
म.चैतन्य..दिसंबर २०१६
प.पु.स्वामीजी
[ समग्रयोग ]
म.चैतन्य..दिसंबर २०१६
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