पवित्रता से मेरा आशय शरीर की पवित्रता से नहीं, चित्त की पवित्रता से है

क्यों की अबोधिता के बिना पवित्रता आ नहीं सकती है। पवित्रता से मेरा आशय शरीर की पवित्रता से नहीं, चित्त की पवित्रता से है। और चित्त की पवित्रता अबोधिता के बिना संभव नहीं है। अबोधिता से प्रथम देहभाव छूटता है और देह भाव छूटने के पहले देह की सुप्त वासनाएँ छूटती हैं। आध्यात्मिक मार्ग में यह क्रमबध्द तरीके से होता ही रहता है।"में यह सब जल्दी -जल्दी बोल गया और सुमा मेरी ओर देख नहीं रहा था; कान मेरी ओर करके, आँखें बंद करके मेरे बातों को समझने का प्रयास कर रहा था। यह सब मानो वह कानों के द्वारा पी जाना चाहता था। मैं हिन्दी भाषा में बोल रहा था और उसे हिन्दी संपूर्ण रूप से समझ में नहीं आती थी इसलिए वह संपूर्ण एकाग्रता के साथ समझने का प्रयास कर रहा था। लेकिन मेरी यह बात वह समझ ही नहीं पाया और अपनी छोटी - छोटी आँखें खोलकर मेरी ओर जिज्ञासा से देखने लग गया। मैं समझ गया कि वह बात उसकी समझ में नहीं आई थी। मैंने उससे कहा, "ठीक है, मैं तुम्हे उदाहरण के साथ समझाता हूँ। मान ले, तुम किसी कार्य से बस से गुवाहटी शहर की ओर जा रहा है और यात्रा के दौरान एक स्थान पर एक सुंदर स्त्री तेरी बस में सवार होती है।


-हि.स.यो-४
 पुष्ट-५७

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