जब तक विश्वास नही है तो र्हदय की गहराई से प्रार्थना की ही नही जा सकती है

जिस प्रकार मंजिल ही पता न हो तो रास्ता धुन्डना तो और कठिन हो जाता है ।इसी प्रकार से ईश्वर के स्वरूप का ,स्थान का पता ही नही है तो प्रार्थना किसे करे ?किस दिशा में करे ?उस प्रार्थना की दिशा ही स्पष्ट नही होती ।जब तक प्रार्थना को सही दिशा नही है तब तक संपूर्ण विश्वास नही होगा ।और जब तक विश्वास नही है तो र्हदय की गहराई से प्रार्थना की ही नही जा सकती है ।और जब तक र्हदय की गहराई से प्रार्थना न की जाए ,वह प्रार्थना पूर्ण कैसे हो सकती है ।प्रार्थना करने में र्हदय का बड़ा महत्वपूर्ण स्थान है ।र्हदय का भाव ही प्रार्थना की बहुत बड़ी शक्ति होती है ।और यह र्हदय का भाव आस्था के कारण निर्माण होता है ।

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