परमात्मा एक वैश्विक चेतनशक्ति है।
परमात्मा एक वैश्विक चेतनशक्ति है। और जिन्हें हम परमात्मा मानते
हैं वे उस शक्ति के माद्यम हैं, परमात्मा नहीं। क्योंकि परमात्मा
का कोई रूप है ही नहीं, वह निराकार है। और जो दिखता है, वह
माध्यम है। परमात्मा से प्रत्येक आत्मा जुड़ी है। अब बता , ये सब
जीवन के एक प्रकार के निष्कर्ष ही हैं न! मेरी नानी ने जीवन में
अनुभव के आधार पर मेरे बालमन में यह आध्यात्म का बीज बोया।
जब समूचे आध्यात्म का निचोड़ ही प्राप्त हो गया हो तो जीवन में
फिर रह जाती है सिर्फ अनुभूति , उस परमात्मा की अनुभूति। और फिर
जीवन में अनुभूति को ही खोजता रहा। पुस्तकें निर्जीव हैं, वे
अनुभूति नहीं करा सकतीं। और इसलिए। मैं जीवन में पुस्तकों की ओर
कभी आकर्षित नहीं हुआ। ये सब बातें सारे पुस्तकों और शास्त्रों का
निचोड़ है। पुस्तकें मनुष्य को दिशाज्ञान करतीं हैं कि उसे किस ओर
जाना चाहिए। लेकिन उनकी मजबूरी है कि वे हमें लेकर नहीं जा सकतीं,
जाना हमें ही पड़ता है। और दिशाज्ञान तो मुझे पहले ही हो चुका था,
इसलिए उस अनुभूति की निश्चित दिशा में मै स्वयं ही आगे बढ गया।
और हम जीवन में किस मार्ग पर चलते हैं, हमारे गति भी उसी मार्ग
पर आगे की ओर होती है। और मेरे गुरु शिवबाबा ने हिमालय की
गुफा में अनुभूति कराके मेरे आगे की प्रगति कराई और उस दिव्य
अनुभूति से ही सारा ज्ञान प्राप्त हो गया। अब चलो, यह चर्चा
समाप्त करें, समय भी काफी हो गया है।" ऐसा कहकर मैं ने वह
चर्चा समाप्त की और सुमा देखता ही रह गया कि अचानक मुझे क्या
हो गया।
हि.स.यो-४
पुष्ट -६३
हि.स.यो-४
पुष्ट -६३
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