गुरु पूर्णिमा २ ० १ ६

आज एक नया प्रयोग करने जा रहे है ।
आप अनुभव करो की हिमालय की पास से एक छो.....टी सी नदी बह रही है । उस नदी के उस और आपकी आत्मा बैठी हुई है और नदी के इस और गुरुतत्व की आत्मा बीराजमान है । केवल आप दोनों ही है । और आप दोनों ध्यान कर कर रहे है । आपका ध्यान स्वयम ही लगा हुआ है । आप मन ही मन ही मन बोल रहे हो ," मै एक पवित्र आत्मा हूँ ।मै एक शुध्द आत्मा हूँ ," आप भूल गए आप कहाँ से आए है ? आपका घर कहाँ है ? आप का परिवार कौनसा है ? कौनसा गाँव है ? कौनसा देश है ? सब.......कुछ भूल गए ।
यानी आत्मा के अलावा मेरा और कोई स्वरूप नही है । न मै पुरुष हूँ , न स्त्री हूँ । आप जो भी है , आप एकदम शुध्द आत्मा के स्वरूप में अपने आप को मानते हुए नदी के उस किनारे पे बैठे हुए है । और परमात्मा साक्षात गुरुशकतियोके माध्यम से आपके ही सामने बैठा हुआ है , बाकी दुनियाँ में कोई नही है । परमात्मा है और आप है....बस । और आप ध्यान कर रहे है.....ध्यान कर रहे है....ध्यान कर रहे है ।


गुरु पूर्णिमा 

 २ ० १ ६ 

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