चाय बागान की ताज़ी चाय की खुशबू अलग ही लग रही थी
चाय बागान की ताज़ी चाय की खुशबू अलग ही  लग रही थी। वे बिना दूध की ही चाय 
पीने के  आदी होते हैं। वैसे ही मुझे भी पिलाई और वह  मेरे चेहरे की ओर 
अपेक्षा से देखने लग गया  और बोला, " मुझे मेरे पूर्वजन्म के बारे में बताओ न , मै जानना चाहता हूँ।" "मैं ने मेरी चाय समाप्त की और थोड़ा चित्त 
को स्थिर   किया और आँखें बंद करके उसके पूर्वजन्म पर चित्त रखकर आगे बताना
 चालू किया , " तू पूर्वजन्म एक मुनि था जिसकी सांसारिक सुखों की वासनाएँ पूर्ण नहीं हुई थीं। लेकिन  गुरुसान्निध्य मिलने के कारण अध्यात्म की एक उँचाई तक पहुँचा। सदैव गुरु के सान्निध्य  में रहा, गुरुदेव की जन्मभर 
सेवा की और सतत  गुरु सान्निध्य में ही रहने के कारण याद नहीं रहा  कि 
सांसारिक सुखों की वासना अभी भी बाकी  है। यह सब तुम्हारे गुरुदेव जानते थे
 लेकिन   उन्होंने कभी प्रकट नहीं किया। वे यह भी जानते थे कि उस जन्म में 
पूर्णत्व की स्थिति  नहीं होनेवाली थी क्योंकि भीतर की वासनाएँ  बाकी थीं। 
तुम उत्तरप्रदेश मे रहनेवाले थे, तुम्हारा नाम भानुदास जमींदार था। घर की 
बड़ी जमींदारी थी, काफी पैसा था लेकिन  गुरुसान्निध्य मिला और गुरुमार्ग में
 चल दिए। कभी-कभी जैसी संगत हमें मिलती है, वैसे ही  हम जीवन में हो जाते 
हैं। घर-गृहस्ती पूर्ण नहीं हुई थी, सामसारिक वासनाएं भी पूर्ण नहीं  
हुई थीं लेकिन गुरुसान्निध्य के प्रवाह में बह  गए। लेकिन भीतर -ही- भीतर 
सांसारिक सुखों   की वासना रह ही गई। रह  क्या गई, एकादी   ( एक -आध) फॉस 
जैसी फॉस हुई थी। लेकिन गुरुसांन्निध्य में उसका एहसास नहीं हुआ।  संपूर्ण जन्म ही चला गया लेकिन वासना रह  गई। वह वासना ही अगले जन्म का कारण  बनी।
 
हि.स.यो-४
पुष्ट-५४
हि.स.यो-४
पुष्ट-५४
Comments
Post a Comment